गुरुवार, 6 मार्च 2014

= पारिख का अंग २७ =(७/८)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
*पारिख का अंग २७*
*दादू जे नांही सो सब कहैं, है सो कहै न कोइ ।*
*खोटा खरा परखिये, तब ज्यों था त्यों ही होइ ॥७॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जो स्वरूप से संसार सत्य नहीं है, उसको तो सांसारिक पुरुष कहते हैं कि है और जो स्वरूप से सत् चित् आनन्द स्वरूप परमेश्वर है, उसके लिये कहते हैं, ईश्वर कहॉं है ? ‘खोटा’ - माया और माया का कार्य संसार, ‘खरा’ - सत्य स्वरूप परमेश्वर, विचार के द्वारा देखिये । फिर जैसा स्वरूप है, वैसा - वैसा ही अनुभव होने लगता है ॥७॥ 
*दह दिशि फिरै सो मन है, आवै जाइ सो पवन ।* 
*राखणहारा प्राण है, देखणहारा ब्रह्म ॥८॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासु ! दशों दिशाओं में वासना - रूप संकल्प के द्वारा जो घूमता है, वह तो मन है और आने - जाने की क्रिया कर्म करने वाला प्राण है । जो शरीर का रक्षक है, और जो सर्व का दृष्टा है, वही ब्रह्म है ॥८॥
(क्रमशः)

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