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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“त्रयोदश - तरंग” २७-२८)*
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जा दिन तै नहिं जीव हत्थो कछु,
मूढ मुल्ला दुख पावत काजी ।
ह्वै इकठे सब बात बनावत,
शाह भ्रमावत दादु जु पाजी ॥
त्याग कुरान लहै मत हिन्दुन्ह,
राह कतेब तजी सब साजी ।
आपुन दीन पुकारत वै मिलि,
दौरि चले पतशा ढिग काजी ॥२७॥
उस दिन से जीव और गो हत्या बन्द होने पर मूढ काजी - मुल्ला बहुत दु:खी हुये । वे एकत्र होकर विचार - विमर्श करने लगे कि इस पाजी दादू ने बादशाह को भरमा दिया है । जिससे बादशाह कुरान का मत छोड़कर हिन्दुओं की धर्मनीति को अपाने लगा है । अब अपने दीन इमान का क्या होगा ? फिर वे सब मिलकर दौड़ते हुये बादशाह के पास पहुँचे, और पुकार करते हुये कहने लगे ॥२७॥
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*बादशाह को भर्मित करना*
क्यों अपनो मत छाँडि अकैंबर !
यों तुम हिन्दुन्ह को मत लीन्हे ।
छाड़ि महोम्मद पीर पगम्बर,
राह बिसारि भली विध कीन्हे ॥
कौन भ्रमावत है तुमको शठ,
कौन अजामत जो तुम चीन्हे ।
ना हम मानत ताहिं अजामत,
देखहिं है कितनो दम लीन्हे ॥२८॥
हे बादशाह ! आप अपना मत छोड़ कर हिन्दुओं का मत क्यों अपना रहे हैं ? मोहम्मद साहब की राह छोड़कर कौन सी भली बात कर रहे हैं ? आपको कौन शठ भरमा रहा है ? उसकी कौन सी करामात के चक्कर में आप आ गये हैं ? हम उस पाखंडी को करामाती फकीर नहीं मानते, हम देखना चाहते हैं, कि उसमें कितना दम है ॥२८॥
(क्रमशः)
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