गुरुवार, 12 जून 2014

= पं. त./३९-४० =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“पंचदशी - तरंग” ३९-४०)*
*गो उद्धार गऊ माताओं में श्री दादूजी के प्रति भाव*
गुठले पधारे संत, बालक सेवक सँग,
बन में चरत धेनु स्वामी को निहारिये ।
ज्यूं ज्यूं चले संग आय, ठाड़ि रहे शीश नाय,
मँडल करत धेनु सबद उचारिये ।
कमण्डलु जल धार, मुख शीश स्वामी डार,
जीवन मुकति करि गाय निस्तारिये ।
देत उपदेश जन, पंथ में चलत मुनि,
माधो कहै संत सब अचँभ बखानिये ॥३९॥ 
रमते हुये श्री दादूजी गुठले ग्राम की सीमा में पधारे । वहां वनभूमि में बालक धेनु चरा रहे थे । संत श्री दादूजी को देखकर सभी धेनु उनके समीप आ गई, साथ - साथ चलने लगीं, कोई धेनु शीश निवाने लगी, तो कोई मंडलाकार परिक्रमा करने लगी, रंभाने भी लगी । तब श्री दादूजी ने उनके उद्धार हेतु अपने कमण्डलु से जलधारा उनके मुखों में डाली । संत कमण्डलु के जल की धार मुख और शीश पर गिरने से उन सब का उद्धार हो गया । पशु योनि से मुक्ति मिल गई, जीवोद्धार हो गया । आश्‍चर्यचकित संगी संत शिष्यों को उपदेश देते हुये श्री दादूजी आगे बढ़ चले ॥३९॥ 
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*इन्दव छन्द*
*लोहरवाड़ा*
लोहरवाड़ हिं आप पधारत, 
दुष्ट विरागि जु स्वामि बुलाये ।
भूमिहु खोदि भरे असि शूल जु, 
ऊपर नौतम वस्त्र बिछाये ।
प्रीति करी बगुला जिम ध्यानहिं, 
भीतरं को छल संत लखाये ।
दण्ड गहे कर दूर कियो पट, 
तां छल को जन आप दिखाये ॥४०॥ 
चलते - चलते सभी संत लोहरवाड़ा ग्राम में पहुँचे । वहाँ द्वेष ईर्ष्या से ग्रसित दुष्ट वैरागियों ने स्वामीजी को अपने स्थान पर बुलाया । छलकपट पूर्वक भूमि में खड्ढा बनाकर उस में तीखे शूल तलवार गाड़ दिये, ऊपर सुन्दर वस्त्र बिछा दिये । फिर बगुला की भाँति छल प्रीति दिखाते हुये स्वामी जी को बुलाकर उस बिछायत पर बैठने को कहा । अन्तर्यामी संत उनके छल को जान गये, और अपने दण्ड से वह बिछा हुआ वस्त्र हटा दिया । तब सभी के सामने छल प्रकट हो गया ॥४०॥ 
(क्रमशः) 

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