#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः॥
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*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*३. काल चितावनी को अंग*
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*बीति गये पिछले सब ही दिन,*
*आवत हैं आगिलौ दिन नेरै ।*
*काल महा बलवंत बड़ौ रिपु,*
*सांधि रह्यौ सिर ऊपरि तेरै ॥*
*एक घरी मंही मारि गिरावत,*
*लागत ताहिं कछू नहीं बेरै ।*
*सुन्दर संत पुकारि कहैं सब,*
*हूं पुनि तोहि कहूं अब टेरै ॥९॥*
तेरे बचपन और तरुणाई के दिन बीत गये, बुढ़ापे के दिन आने वाले हैं ।
महान् बलशाली तेरे शत्रु काल(मृत्यु) तुझे अपना लक्ष्य बना कर तेरे सिर पर खड़ा है ।
वह एक घड़ी(अल्प काल) में भी तुझे मार कर गिरा सकता है, उसको इस कार्य की पूर्णता में कोई अधिक समय नहीं लगता ।
*श्री सुंदरदास जी* कहते हैं - पुराने सन्तों ने तुझको अनेक बार इस विषय में सावधान किया है । अब मैं भी तुझे यही चेतावनी दे रहा हूँ ॥९॥
(क्रमशः)
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