卐 सत्यराम सा 卐
दादू जीव जंजालों पड़ गया, उलझ्या नौ मण सूत ।
कोई इक सुलझे सावधान, गुरु बाइक अवधूत ॥
दादू मन भुजंग यहु विष भर्या, निर्विष क्योंही न होइ ।
दादू मिल्या गुरु गारड़ी, निर्विष कीया सोइ ॥
-------------------------------------------------
साभार : बिष्णु देव चंद्रवंशी ~
बड़े से बड़े शक्तिशाली मनुष्य हुए परन्तु उनकी भी सम्पूर्ण वासनायें पूर्ण न हो सकीं। इसलिये शरीर यात्रा के लिये आवश्यक कर्मों को करते हुए मुख्य ध्यान परमात्मा की प्राप्ति में लगाओ। विषयों को भोगकर इन्द्रियों को तृप्त करने की बात सोचना ऐसा ही है जैसे खुजलाकर खाज को अच्छा करने की आशा करना। संसार के व्यवहार उलझे हुए कच्चे सूत के समान हैं, जितना सुलझाने की चेष्टा करोगे उतने ही ये उलझेगें। इसलिये बुद्धिमानी पूर्वक संसार का व्यवहार चलाते हुए मुख्य बुद्धि परमार्थ में ही रखना चाहिये।
________ श्री कृष्ण हरी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें