#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू बाहर का सब देखिये, भीतर लख्या न जाइ ।
बाहर दिखावा लोक का, भीतर राम दिखाइ ॥
दादू यह परिख सराफी ऊपली, भीतर की यहु नाहिं ।
अन्तर की जानैं नहीं, तातैं खोटा खाहिं ॥
दादू झूठा राता झूठ सौं, सॉंचा राता सॉंच ।
एता अंध न जानहिं, कहँ कंचन, कहँ कॉंच ॥
दादू सच बिन सांई ना मिलै, भावै भेष बनाइ ।
भावै करवत उर्ध्वमुख, भावै तीरथ जाइ ॥
दादू साचा हरि का नाम है, सो ले हिरदै राखि ।
पाखंड प्रपंच दूर कर, सब साधों की साखि ॥
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साभार : बिष्णु देव चंद्रवंशी ~
बाहरी पवित्रता की अपेक्षा हृदय की पवित्रता मनुष्य के चरित्र को उज्जवल बनाने में बहुत अधिक सहायक होती है ! मनुष्य को काम, क्रोध, हिंसा, वैर, दम्भ आदि दुर्गन्ध भरे कूड़े को बाहर फेंक कर हृदय को सदा साफ रखना चाहिये ! बाहर से निर्दोष कहलाने का प्रयत्न न कर मनसे निर्दोष बनना चाहिये ! मन से निर्दोष मनुष्य को दुनिया दोषी बतलावे तो भी कोई हानि नहीं; परन्तु मन में दोष रखकर बाहर से निर्दोष कहलाना हानिकारक है !
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