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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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पद २९३ के पाद दो के -
*तो शोभा पिव तेरे ताँई* इस अंश पर
दृष्टांत -
नृपति हरेक हि साधु के, जाता दर्शन चाय ।
जो सिध तो धनि भाग मम, न तो बडाई पाय ॥१॥
एक राजा अपनी राजधानी में जो संत आते थे उन सबके दर्शन करने जाया करते थे । जब उनके मंत्री आदि कहते कि - आप कोई सिद्ध संत पधारें, उनके पास ही पधारा करें ।
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तब राजा कहता था - सिद्ध हों तब तो मेरा धन्य भाग है और सिद्ध नहीं हों तो भी यह बड़ाई तो मिल ही जाती है कि राजा अति श्रद्धालु भक्त हैं, सभी संतों के दर्शन करने जाते हैं । यह भी मेरे लिये अच्छी ही बात है । सोई उक्त पद २९३ के पाद दो में कहा है - मेरे हृदय घर में पधारें तब ही आपके लिये शोभा की बात रहेगी । सोई उक्त राजा ने कहा था - मेरे लिये शोभा की बात तब ही है जब मैं संतों के दर्शन सत्संग के लिये जाता रहूं ।
इतिश्री राग नट नारायण १८ समाप्तः
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