शनिवार, 28 जून 2014

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卐 सत्यराम सा 卐
दादू बुरा न बांछै जीव का, सदा सजीवन सोइ । 
परलै विषय विकार सब, भाव भक्ति रत होइ ॥ 
सतगुरु संतों की यह रीत, आत्म भाव सौं राखैं प्रीत । 
ना को बैरी ना को मीत, दादू राम मिलन की चीत ॥ 
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साभार : Savita Savi Lumb

परोपकार करने से पहले अपना ही भला होता है ! जिस तरह यह बात सत्य है उसी तरह यह सत्य है कि दूसरे का बुरा सोचने मात्र से, पहले अपना बुरा हो जाता है ! अगर परमात्मा करुणानिधि है, सुख रूप है, आनन्द रूप है तो क्रूर(रुद्र) रूप भी है ! जाकर हस्पतालों में, पागलखानों में, वृद्धाश्रमों में जाकर देखो लोग कैसे दुख से कराह रहे हैं ! जिसने दुख दिया है उसे परमात्मा दुख देने में संकोच नहीं करता ! उसे हमारे कर्मों के अनुसार फल देना ही पड़ता है ! इसलिये भले बनो और भला करो !

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