शनिवार, 14 जून 2014

११२. गुरुमुख कसौटी

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*अथ राग अडाणा ५*
*११२. गुरुमुख कसौटी । ललित ताल*
*भाई रे, भानै घड़ै गुरु मेरा, मैं सेवक उस केरा ॥टेक॥*
*कंचन कर ले काया, घड़ घड़ घाट निपाया ॥१॥*
*मुख दर्पण मांहि दिखावै, पीव प्रकट आन मिलावै ॥२॥*
*सतगुरु साचा धोवै, तो बहुरि न मैला होवै ॥३॥*
*तन मन फेरि सँवारै, दादू कर गहि तारै ॥४॥*
इस पर दृष्टांत -
नारी विवाह रांगड़े, सौ जूती का नेम ।
छाज तोड खोता हन्या, डरी नारि किया प्रेम ॥१॥
एक स्त्री ने प्रण किया था कि मैं उसके साथ विवाह करुंगी जो मेरी सौ जूती प्रतिदिन खायेगा । उक्त प्रण के कारण उस से कोई विवाह नहीं करता था । किन्तु एक राजपुत ने उससे विवाह कर लिया । विवाह करके जब वह उसे साथ लेकर चला तब गाड़ी में एक छाज बाँध दिया था और एक खोता - गधा गाड़ी के बाँध लिया था ।
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मार्ग में गाड़ी के हिलने से व वायु से छाज बजने लगता तो वह राजपूत दंडा उठा कर छाज के मार के बोलता था - मेरी आज्ञा बिना क्यो बजता है ? जानता नहीं मेरे स्वभाव को मैं तुझे नष्ट कर दूंगा । गधा जब बोलता तो उसे दंडों से मारते हुये बोलता था - मेरी आज्ञा के बिना क्यों बोलता है यदि बोलेगा तो जान से मार दूंगा ।
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उक्त स्त्री उक्त राजपूत का व्यवहार देख कर डर गई । उसने सोचा - इस की इच्छा व आज्ञा बिना मैं यदि कु़छ करुंगी व कहूंगी तो यह मेरी भी इनके समान दशा करेगा । वह ससुराल में जाकर अपने प्रण को भूल गई । और सदा पति की आज्ञा में ही रहने लगी ।
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सोई उक्त ११२ के पद की टेक में कहा है भाई रे भान घड़े गुरु मेरा जो गुरु आसुर गुणों को भान नष्ट कर, अज्ञान हर कर मन में दैवी गुण, राम भक्ति और ज्ञान को उत्पन्न करके जैसे उक्त नारी को उक्त राजपुत ने सुधार दिया था वैसे ही शिष्य को सुधार दे, वही मेरा गुरु है ।
इतिश्री राम अडाणा ५ समाप्तः

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