गुरुवार, 26 जून 2014

२७३. ते मैं कीधेला राम ! जे तैं वार्या ते

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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राग टोडी(तोडी) १६
२७३.(गुजराती) केवल विनती । सवारी ताल
ते मैं कीधेला राम ! जे तैं वार्या ते ।
मारग मेल्हि, अमारग अणसरि, अकरम, करम हरे ॥टेक॥
साधू को संग छाड़ी नें, असंगति अणसरियो ।
सुकृत मूकी, अविद्या साधी, बिषिया विस्तरियो ॥१॥
आन कह्युं आन सांभल्युं, नैणें आन दीठो ।
अमृत कड़वो, विष अमी लागो, खातां अति मीठो ॥२॥
राम हृदाथी विसारी नें, माया मन दीधो ।
पाँचे प्राण गुरुमुख वरज्या, ते दादू कीधो ॥३॥
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पद २७३ की टेक - ते मैं कीधेला राम ! जे तैं वार्या ते ।
इस पर - दृष्टांत -
जहँ बरजे तहँ जाय मन, ज्यों नृप काला बैल ।
वैद्य बताई रोग मैं, आप छुड़ाई गैल ॥१॥
एक राजा के एक असाध्य रोग हो गया था । राजा ने अपने मुख्य वैद्य से कहा - मेरा रोग नहीं मिटाओगे तो आपकी जीविका छीन ली जायगी । तब वैद्य ने कहा - आपके रोग मिटने में आपका प्रिय काला बैल प्रतिबन्धक है । आप अपने काले बैल को भूल जाओ तो आपका रोग मिट जायगा । ऐसा कहकर वैद्य ने अपना पीछा छुड़ा लिया । तब राजा काले बैल को भूलने का प्रयत्न करने लगा किन्तु वह भूलने के यत्न से औेर अधिक याद आता था ।
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सोई उक्त २७३ पद की टेक में कहा है कि - हे राम जी ! जो आपने निषेध किये है, वे ही कार्य मैंने किये हैं फिर उक्त राजा के समान मेरा जन्मादि रोग कैसे मिटेगा ? अतः आपकी कृपा से ही भवरोग मिटेगा, मेरे साधना से नहीं । यह मन तो निषैधों में ही जाता है ।

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