शनिवार, 28 जून 2014

२८२. अंतर पीव सौं परिचय नाहीं

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीदादूवाणी०प्रवचनपद्धति* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
२८२. भेष बिडंबन । ललित ताल
हम पाया, हम पाया रे भाई । भेष बनाय ऐसी मन आई ॥ टेक ॥
भीतर का यहु भेद न जानै, कहै सुहागिनी क्यों मन मानै ॥१॥
*अंतर पीव सौं परिचय नाँहीं, भई सुहागिनी लोगन मांहीं ॥२॥*
सांई स्वप्नै कबहुँ न आवै, कहबा ऐसे महल बुलावै ॥३॥
इन बातन मोहि अचरज आवै, पटम किये कैसे पीव पावै ॥४॥
दादू सुहागिनी ऐसे कोई, आपा मेट राम रत होई ॥५॥
पद २८२ के पाद २ -
*“अंतर पीव सौं परिचय नाहीं,*
*भई सुहागिनि लोकन मांही ॥२॥”*
पर दृष्टांत -
कुम्भ गाड आसन तले, दीपक धर ढँक मांहिं ।
लोगन को कह रात को, ब्रह्मज्योति दर्शाहिं ॥४॥
एक ग्राम में एक साधु ने अपनी भजन करने की कुटिया में आसन के नीचे की भूमि खोद कर उसमें एक घड़ा गाड दिया और उसमें एक तेल का दीपक रख दिया । रात्रि के समय जितनी देर भजन करने का ढोंग करे तब उस दीपक को जलाकर उसके उपर उसका मुख खुला रख कर बैठ जाय ।
.
दीपक का प्रकाश घड़े के मुख से निकल कर कुटिया में फैल जाय । दिन को उस पर ढँकन लगा कर उसके ऊपर गद्दा बिछादे । ग्राम में प्रचार करे दिया कि मैं जब भजन में बैठता हूं तब कुटिया में ब्रह्मज्योति प्रकट हो जाती है । जिसको दर्शन करना हो वह जंगला खुला रहाता है उसमें से कर सकता है । फिर लोग दर्शन करने लगे ।
.
एक विचरते हुये विद्वान् संत ग्राम में पधार गये थे । ग्राम के लोगों ने उनको भी कहा - हमारे संत रात्रि को भजन में बैठते हैं तब उनकी भजन करने की कुटिया ब्रह्मज्योति से भर जाती है । संत ने पू़छा - प्रकाश कैसा होता है ? लोगों ने कहा - दीपक जैसा । संत ने कहा - तब ब्रह्मज्योति नहीं है, दीपक ज्योति ही है । ग्राम वालों ने कहा - तुम कैसे जान सकते हो । तुमने तो रोटी माँग कर खाई है ।
.
उसके पश्चात् उन विचारशील व्यक्तियों ने कहा - दीपक तो कुटिया में नहीं दिखाई देता है । संत ने कहा - आसन के नीचे होगा । आसन को उठा कर देखो । तब उन लोगों ने दो चार युवकों को कहा - संत की भजन शाल का आसन उठा कर देखो । वे लोग उस कुटिया में घुसने लगे तब संत ने कहा - इस कुटिया में मत जाओ । यह तो भजन करने की ही है । फिर भी वे घुसकर आसन उठाने लगे तब साधु ने तमक कर कहा - आसन को नहीं उठाना यदि नहीं मानोगे तो मैं अभी भस्म कर दूंगा ।
.
इतने में तो उन लोगों ने घड़े पर बिछे हुये गद्दे को उठाकर देखा तो भूमि के बराबर एक ढँकन पड़ा है । उसको उठाया तो भूमि में गड़े हुये घड़े में तेल से भरा दीपक है, उसमें बत्ती जुती हुई बुझी पड़ी है । इतना देखकर वे लोग चुपचाप बाहर आ गये । सोई उक्त पद २८२ के पाद २ में कहा है कि परमात्मा का तो कु़छ भी ज्ञान नहीं है फिर भी लोगों को उक्त साधु के समान कहते है । हमने तो ब्रह्म प्राप्त कर लिया है । वे दंभी ही होते हैं ।
इतिश्री राग टोडी १६ समाप्तः

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें