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३०६. ज्ञान उपदेश । त्रिताल
भाई रे, ऐसा एक विचारा, यूं हरि गुरु कहै हमारा ॥ टेक ॥
जागत सूते, सोवत सूते, जब लग राम न जाना ।
जागत जागे, सोवत जागे, जब राम नाम मन माना ॥ १ ॥
देखत अंधे, अंध भी अंधे, जब लग सत्य न सूझै ।
देखत देखे, अंध भी देखे, जब राम सनेही बूझै ॥ २ ॥
बोलत गूंगे, गूंगे भी गूंगे, जब लग सत्य न चीन्हा ।
बोलत बोले, गूंगे भी बोले, जब राम नाम कह दीन्हा ॥ ३ ॥
जीवत मूये, मूये भी मूये, जब लग नहीं प्रकासा ।
जीवत जीये, मुये भी जीये, दादू राम निवासा ॥ ४ ॥
पद ३०६ पाद एक- जागत जागै सोवत जागे, जब राम नाम मन माना ।
इस पर दृष्टांत -
नृपति दर्श गया संत के, सुते संत रु दास ।
नृपति जगाये दोउन को, राम राम कह त्रास ॥ १ ॥
एक राजा एक संत के दर्शन करने रात में गया था । सत्संग करते-करते रात्रि अधिक चली गई । अतः उक्त संतजी के शिष्य संत और राजा के सेवक दोनोंओं को ही निद्रा आ गई । तब राजा ने कहा - मेरे दासों को ते निद्रा आ गई तो कोई बात नहीं किन्तु आपके शिष्य संत भी सब सो गये हैं । संत ने कहा - संतों का मन राम नाम में लगा हैं, अतः ये तो सोते हुये भी जागते ही हैं । राजा - यह क्या पता है कि संतों का मन राम नाम में ही लगा है ? संत ने कहा - तुम उच्चस्वर से कोई शब्द बोलो फिर पता लग जायेगा । उठते ही जिनके मन में जो होगा वही बोलेंगे । राजा ने उच्चस्वर से सावधान शब्द बोला - तब संत और राजा के सेवक दोनों ही जग गये । संत तो राम-राम बोलते हुये उठे और राजा के सेवक पकड़ो, मारो कौन आगया है, इत्यादि त्रास जनक शब्द बोलते हुये उठे । तब राजा ने मान लिया । सोई उक्त ३०६ के पद के एक पाद में कहा है कि- जिनका मन राम राम में रहता है, वे संत तो जागते और सोते दोनों अवस्थाओं में ही मोह नींद से जागे हुये ही रहते हैं ।
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