सोमवार, 30 जून 2014

*पद ३३०. निन्दक बाबा वीर हमारा,*

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*पद ३३०*
*निन्दक बाबा वीर हमारा,*
*बिन ही कौडे वहै विचारा ॥*
प्रसंग कथा -
सांभर में गाली दीई, गुरु दादू की आय ।
तब हि शब्द यह उच्चरा, धरी मिठाई पाय ॥१॥
एक दिन सांभर में एक व्यक्ति ने दादूजी के पास आकर दादूजी को गालियाँ देना आरम्भ किया । किसी अन्य संत ने दादूजी को कहा - यह व्यक्ति व्यर्थ ही आपको गालियाँ देता है । यह सुनकर दादूजी ने यह ३३० का पद बोलकर उससे भाई के समान प्रेम किया था । इस ३३० के पद को सुनकर वह बहुत लज्जित हुआ और मिठाई की छाव लाकर दादूजी की भेंट धरी थी । महान् संतों के स्वभाव ऐसे ही होते हैं ।
इतिश्री राग गुंड २० समाप्तः

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