मंगलवार, 1 जुलाई 2014

= षो. त./२३-२४ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“षोडशी तरंग” २३/२४)*
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*आकाशवाणी परमात्मा का कोप*
‘‘पर्वत भेड़ि करूं परलै अब, 
क्यूं विरथा जन मोर सताई ।’’ 
यों सुनि दादु रची विनती तब, 
अम्बपुरी हरि! देहु बचाई । 
दीन गरीबहिं क्यों जन मारत, 
म्हेर करो प्रभुजी सुखदाई । 
काँपत भूमि थमे तब पर्वत, 
अम्बपुरी गुरुदेव बचाई ॥२३॥ 
‘‘मैं अभी दोनों पर्वतों के बीच भींचकर इस नगरी को प्रलय से ध्वस्त कर देता हूं, मेरे भक्त संतों को वृथा सताने वालों को ईश्‍वर - कोप से यही दण्ड मिलेगा ।’’ - श्री हरि की कुपित वाणी सुनकर श्री दादूजी विनती करने लगे - ‘‘हे हरि ! दया करो, अम्बापुरी को विनाश से बचाओ, इन दीन गरीबों को मत मारो । हे प्रभुजी ! आप तो दयालु हो, सुखदायी हो, इन सब पर महर करो ।’’ दादूजी की प्रार्थना पर भूकम्प सहित कम्पायमान पर्वत ठहर गये । संत प्रार्थना से, श्री दादू दयाल की विनती से आमेर की रक्षा हो गई ॥२३॥ 
*राजा घबरा गया* 
कोपित नारद बीण बजावत, 
सो नगरी जन संगति तारी । 
गोकुल लेय उबारत श्रीहरि, 
शक्र प्रकोपित जें गिरिधारी । 
यों हरि कोपित अम्बपुरी जन, 
दादु दयालु सुसंत उबारी । 
भूपति दौरि परे चरणां मधि, 
पाद - सरोजन्ह की रज धारी ॥२४॥ 
(श्री दादूजी द्वारा रचित सम्पूर्ण - विनती दादूवाणी के ३४वें अंग में द्रष्टव्य है) 
जिस प्रकार वीणा वादक नारदजी के कोप से संत ने नगरी की रक्षा की थी, और इन्द्र प्रकोप से गोकुल की रक्षा कृष्ण ने गिरिधारी बनकर की थी, उसी प्रकार संत श्री दादूजी ने हरि के कोप से अम्बापुरी की रक्षा की । भूपति मानसिंह दौड़कर संत - चरणों में गिर पड़ा और उनकी चरणरज शिर पर लगाई ॥२४॥ 
(क्रमशः)

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