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🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“षोडशी तरंग” २७/२८)*
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*राजा मानसिंह कृत स्तुति*
*मालती छन्द*
नमो हरिदास, हरो मम त्रास,
रखो पुरवास, विनय करूं तास ।
भई दिव्य भाष, किये अघ नाश,
उपास उपास उपास उपास ॥
बुरे द्विज निन्द, महा मतिमंद,
भये मद अन्ध, लखे नहिं छन्द ।
तुम्हीं निर्द्वन्द्व सदा सुखकंद,
गोविन्द गोविन्द गोविन्द गोविन्द ॥
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लियो अवतार सबै सुखकार,
रच्यो करतार, अधर्म उद्वार ।
कियो निसतार जु सिरजनहार,
उचार उचार उचार उचार ॥
अकैंबर राय जु तख्त दिखाय,
परें खल पाय, सबैं गुण गाय ।
सदा सुखदाय सुभक्ति दिपाय,
सहाय सहाय सहाय सहाय ॥
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शिरोमणि संत दयालु जु म्हंत,
जपैं भगवन्त पढें गुण ग्रन्थ ।
मुनी बुद्धिमन्त, लियो निज तन्त,
अनन्त अनन्त अनन्त अनन्त ॥
विज्ञान गँभीर गिरा गँज नीर,
हरे पर पीर सदा सुख सीर ।
भर्यो निधि खीर, पिवै जन नीर,
सुधीर सुधीर सुधीर सुधीर ॥
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धरा गुजरात धर्यो नर रूप,
भये द्विज तात, तजे पखपात ।
भये द्विज तात, तजे पखपात ।
दिये तप गात, गुणीजन साथ,
विख्यात विख्यात विख्यात विख्यात ॥
विख्यात विख्यात विख्यात विख्यात ॥
तज्यो जग बाद, सबै उनमाद,
नहीं विषय स्वाद, दिपै सनकादि ।
नहीं विषय स्वाद, दिपै सनकादि ।
गह्यो मत आदि, उजागर साध,
अनादि अनादि अनादि अनादि ॥२७॥
अनादि अनादि अनादि अनादि ॥२७॥
राजा मानसिंह ने श्री दादूजी की स्तुति की - ‘‘हे हरि के दास ! आपको मेरा नमस्कार अर्पित है, मेरी भवत्रास आप ही दूर करो । मेरी विनय मानकर इस आमेर नगरी में ही निवास करो । दिव्य आकाशवाणी से निन्दक पापियों के सब दोष दूर हो गये, सब आपकी उपासना करने लगे है ।
ये निन्दक द्विज तो मतिमन्द हैं, मदान्ध हैं, संतों के लीला छन्द नहीं समझते । आप तो निर्द्वन्द्व और सुखकन्द हैं, सदा गोविन्द नाम रटते रहते है । आपने जीवों के उद्वार हेतु ही अवतार लिया है, इनका निस्तार करने के लिये सदैव सदुपदेश का उच्चरण करते रहते है । अकबर बादशाह को तेजोमय तख्त दिखाकर आपने भक्ति की स्थपना की, खलों का मद चूर - चूर किया । आप भक्त सेवकों के सहायक हैं और श्री हरि आपके सहायक है । हे दयालु ! आप संतों में शिरोमणी हैं, भगवत् जाप करते हुये उपदेश ग्रन्थ के रचयिता हैं, बुद्धिमान् मुनीश्वर है । आपने अनन्त शक्ति वाले ईश्वर का तत्व पा लिया है । ज्ञान - गंभीर आपकी वाणी गंगाजल के समान, संसारी प्राणियों की पीड़ा को हरने वाली है, सबको सुखदायिनी है । आप तो ज्ञान के समुद्र हैं, जो भी भक्तजन इस समुद्र के किनारे या समीप पहुंचता है, ज्ञानामृत पीकर तृप्त हो जाता है । निर्मलमति होकर सुधीर हो जाता है । गुजरात धरा पर द्विज के घर अवतरित होकर भक्ति का प्रचार करने यहाँ तक पधारे, पक्षपात रहित साधुता की शिक्षा दी, तपस्या करके विख्यात हुये । आपके शिष्य होकर सभी संत गुणी हो गये । आपने जगत् का वाद विवाद, विषयस्वाद और सब विकार उन्माद छोड़ दिया, सनकादि की भांति तपस्या करते हुये आदि ब्रह्मपंथ को अपनाया, साधुता का सच्चा उदाहरण आदर्श प्रस्तुत किया आपका मत सिद्धान्त अनादि ब्रह्म की उपासना का मार्ग है ॥२७॥
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*दोहा*
गुरु दादू महिमा अगम, जानि न शारद शेष ।
माधो कथि वर्णन करे, यों कहि मान नरेश ॥२८॥
(क्रमशः)
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