शनिवार, 19 जुलाई 2014

३. काल चितावनी को अंग ~ २५

॥ श्री दादूदयालवे नमः॥
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*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)* 
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व 
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*३. काल चितावनी को अंग* 
*दीर्घाक्षरी छन्द -*
*झूठे हाथी झूठे घोरा झूठे आगै झूठा दौरा,* 
*झूठा बंध्या झूठा छोरा झूठा राजा रानी है ।* 
*झूठी काया झूठी माया झूठा झूठै धंधा लाया,* 
*झूठा मूवा झूठा जाया झूठी याकी वांनी है ॥* 
*झूठा सोवै झूठा जागै झूठा झूझै झूठा भाजै,* 
*झूठा पीछै झूठा लागै झूठै झूठी मांनी है ।* 
*झूठा लीया झूठा दीया झूठा खाया झूठा पीया,* 
*झूठा सौदा झूठै कीया ऐसा झूठा प्रांनी है ॥२५॥* 
तेरे सामने दौड़ने वाले ये हाथी घोड़े मिथ्या हैं, इन में तूँ निरर्थक ही आसक्त हो रहा है । 
तेरी यह देह, यह सम्पति, तेरा दैनिक व्यावहारिक कार्य, तेरा जन्म - मरण, इनके विषय में तेरी धारणाएं भी मिथ्या ही हैं । 
तेरा सोना जागना, दौड़ना धूपना, कार्यों में व्यासक्त रहना, उन का निरन्तर पीछा करना - यह सब कुछ झूँठ है, मिथ्या है, काल्पनिक है । 
तेरा यह लेन देन, तेरा यह खाना पीना और लौकिक व्यवहार करना भी - सब कुछ मिथ्या ही है । अतः हे प्राणी ! तूँ असत्य की वास्तविकता को यथाशीघ्र समझ ले तो अच्छा ! ॥२५॥
{इस दीर्घाक्षरी छन्द में सभी अक्षर दीर्घ होने चाहिये । इसी विवशता के कारण यहाँ 'सुन्दर' शब्द का आभोग नहीं लगा है ।}
(क्रमशः)

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