#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
ना घर रह्या न वन गया, ना कुछ किया कलेश ।
दादू मन ही मन मिल्या, सतगुरु के उपदेश ॥
काहे दादू घर रहै, काहे वन-खंड जाइ ।
घर वन रहिता राम है, ताही सौं ल्यौ लाइ ॥
दादू जिन प्राणी कर जानिया, घर वन एक समान ।
घर मांही वन ज्यों रहै, सोई साधु सुजान ॥
सब जग मांही एकला, देह निरंतर वास ।
दादू कारण राम के, घर वन मांहि उदास ॥
घर वन मांही सुख नहीं, सुख है सांई पास ।
दादू तासौं मन मिल्या, इनतैं भया उदास ॥
ना घर भला न वन भला, जहॉं नहीं निज नांव ।
दादू उनमन मन रहै, भला तो सोई ठांव ॥
बैरागी वन में बसै, घरबारी घर मांहि ।
राम निराला रह गया, दादू इनमें नांहि ॥
卐 सत्यराम सा 卐
ना घर रह्या न वन गया, ना कुछ किया कलेश ।
दादू मन ही मन मिल्या, सतगुरु के उपदेश ॥
काहे दादू घर रहै, काहे वन-खंड जाइ ।
घर वन रहिता राम है, ताही सौं ल्यौ लाइ ॥
दादू जिन प्राणी कर जानिया, घर वन एक समान ।
घर मांही वन ज्यों रहै, सोई साधु सुजान ॥
सब जग मांही एकला, देह निरंतर वास ।
दादू कारण राम के, घर वन मांहि उदास ॥
घर वन मांही सुख नहीं, सुख है सांई पास ।
दादू तासौं मन मिल्या, इनतैं भया उदास ॥
ना घर भला न वन भला, जहॉं नहीं निज नांव ।
दादू उनमन मन रहै, भला तो सोई ठांव ॥
बैरागी वन में बसै, घरबारी घर मांहि ।
राम निराला रह गया, दादू इनमें नांहि ॥

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