गुरुवार, 10 जुलाई 2014

= १५ =

卐 सत्यराम सा 卐
सुत वित मांगैं बावरे, साहिब सी निधि मेलि । 
दादू वे निष्फल गये, जैसे नागर बेलि ॥ 
फल कारण सेवा करै, जाचै त्रिभुवन राव । 
दादू सो सेवक नहीं, खेलै अपना दाव ॥ 
सहकामी सेवा करैं, मागैं मुग्ध गँवार । 
दादू ऐसे बहुत हैं, फल के भूँचनहार ॥ 
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साभार : आराधना आराधिका ~ 
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एक बार पार्वतीजी ने शिवजी से कहा, “आपके भक्त बहोत सारे हैं, रोज मंदिर में... आपके दर्शन के लिए बहोत सारे लोग आते हैं....!” 
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शिवजी ने कहा, “जो लोग आ रहे हैं, उनमे से किसी को भी मुझ पर या आप पर प्रेम नहीं है... आपको पता है ये लोग सब यहाँ दर्शन के लिए क्यों आते हैं.....?? चलिए आज मैं आपको ये बताता हूँ.....” 
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पहला भक्त आया, वो शिवजी को नमस्कार करके बोला, “भगवान दुकान ठीक से नहीं चल रही... आप थोड़ी सी कृपा कर देवें तो मेरा जीवन चले....” 
भगवान ने कहा, “तथास्तु...”
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दूसरा भक्त आया, दोनों हाथ जोड़कर कहने लगा.... “भगवान ३ साल से नौकरी ढूंढ रहा हूँ.... नहीं मिल रही.... अगर आप कुछ कर देवें तो मेरा घर बस जाए.....” 
भगवान ने कहा, “तथास्तु...हो जायेगा...” 
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तीसरा भक्त आया.... दर्शन करके बोला....“काफी साल से बीमारी से परेशान हूँ...बहोत दवाई ली.... पर कुछ असर नहीं हो रहा....”
भगवान ने कहा, “तथास्तु...तेरी तबियत ठीक हो जाएगी.....” 
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इसी तरह एक के बाद एक भक्त आते रहे....और अपनी अपनी परेशानी .....मांगें.....एक के बाद एक बताते रहे.....” 
ये सब पार्वती जी देख रही थी..... 

शिव ने कहा, “देखा न ...?? क्या किसी ने कहा कि हे प्रभु....तेरा मुझ पर प्रेम है .. मैं आपको प्रेम करता हूँ.......मैं सिर्फ आपको मिलने आया हूँ... देखने आया हूँ........ मुझे कुछ नहीं चाहिए.....” 
पार्वती जी चुप हो गई....कुछ नहीं बोल पाई.....! 

MORAL OF THE STORY:
भगवान के पास जाकर ....मंदिर में जाकर..... हम सब सिर्फ अपनी परेशानी...... हमारे सपने.... पूरे करने के लिए.... भगवान से कहा करते हैं..... 
कभी तो ..... बिना कोइ उम्मीद....बिना कुछ मांगने.... हमें भगवान से ...सिर्फ और सिर्फ.... प्रेम से मिलने जाना चाहिए....ऐसे भक्त से मिलने खुद भगवान भी तरसते हैं.....!

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