बुधवार, 9 जुलाई 2014

= स. त. ३-४ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“सप्तदशी तरंग” ३-४)*
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*भूरसि गांव मण्डली सहित राघौदासजी*
होत विदा गुरु अम्बपुरी तजि, 
वासर पाँच लगे मग माँही । 
भूरसि आय रहे मँडली सब, 
राघव सेवकरी तिहिं गाही ॥ 
वासर तीन रहे रमिये गुरु, 
दूसर संत चले रूचि जाँही ।
आय कल्याणपुरी गिरि कंदर, 
पावन सुन्दर शैल सुहाही ॥३॥ 
आमेर से प्रस्थान करके संत मंडली सहित श्री दादूजी पाँच दिन की पथ यात्रा के बाद भूरसी ग्राम पधारे । वहाँ राधवदास जी ने संतों की प्रेमपूर्वक सेवा की । तीन दिवस वहाँ ठहरकर स्वामीजी चुपचाप कल्याणपुरी की तरफ पधार गये । अन्य संत भी यथारुचि रम गये । श्री दादूजी कल्याण गिरि की पावन कन्दरा में जाकर विराजे । संत के विराजने से शैल की शोभा बढ़ गई । वह सुहावना लगने लगा ॥३॥ 
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*श्री दादूजी करडाला गुफा में*
ध्यान धरें द्रुमपात भखें जल, 
यों करि बीत गये इक मासा ।
पीथल सेवक आय गिरे पद, 
देखत सिद्ध जु संत सुखासा ।
पाद - सरोजहिं देखि लुभावत, 
तप्त मिटी तन होत हुलासा ।
दे परिदक्षिण जोड़ि रहे कर, 
शीष निवाय कही तब भासा ॥४॥ 
केवल द्रुमपात का भोजन करते हुये तपस्यारत श्री दादूजी को एक मास बीत गया । तब पीथल नामक सेवक ने आकर संत - चरणों में प्रणाम किया । सिद्ध संत के दर्शनों से मन में सुखानुभूति होने लगी । संत - चरणों की शरण में आने से तन - मन का संताप मिट गया, मन में उल्लास छा गया । पीथल ने संत की परिक्रमा की, चरणों में शीश निवाया और हाथ जोड़कर बोला ॥४॥ 
(क्रमशः) 

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