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*#श्रीदादूदयालवाणी०आत्मदर्शन*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*आगे पीछे संग रहै, आप उठाये भार ।*
*साधु दुखी तब हरि दुखी, ऐसा सिरजनहार ॥३५॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! वह समर्थ परमेश्वर ! अपने अनन्य निष्कामी भक्तों की रक्षा करने को, आगे - पीछे साथ रहते हैं, और भक्तों का सब भर - भार आप उठाते हैं । ऐसे भक्तों को जो कदाचित् कभी दुःख होवे, तो भगवान अपने आपको दुखी मानते हैं । ऐसे वे दयालु सिरजनहार हैं ॥३५॥
बून्दी में बणियो भगत, रामदास जी नाम ।
पोट लई सिर राम जी, जग जाना सब गाँव ॥
दृष्टान्त ~ राजस्थान बून्दी नगर में रामदास जी नाम के एक वैश्य भगवान के और संतों के अनन्य भक्त थे । इनके यहाँ संतों की बहुत सेवा होती थी । आप बणजी का काम किया करते थे । एक रोज जिस गाँव में बणजी करने गये, वहाँ बणजी का नाज लगभग दो मन इकट्ठा हो गया ।
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आपने गट्ठर बंधवाया और गाँव वालों को बोले ~ मेरे सिर पर रख दो । गाँव वाले बोले ~ भक्त जी आपसे नहीं चलेगा । हम लोग आपके घर पहुँचा देंगे । परन्तु भक्त जी ने अपने सिर पर ही गट्ठर रखवा लिया और वहाँ से जब गाँव के बाहर कुछ दूर पहुँचे तो, भक्त जी बोझे से घबरा गये और मन में राम जी से प्रार्थना करने लगे कि प्रभु कोई ऐसा तगड़ा व्यक्ति भेजो, जो इस पोट को ठेठ घर ले जाकर उतारे ।
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यह संकल्प भक्त जी का पूरा करने के लिए राम जी महाराज, आप ही मजदूर रूप में सामने से आते दीखे । और बोले ~ भक्त जी, आपके सिर पर तो बहुत वजन है, लाओ मुझे देओ । झट अपने मस्तक पर पोट को रख ली । भक्त जी बोले ~ भाई, ठेठ घर ले चलना, क्या लेगा ? ‘मैं तो आपसे लेता ही रहता हूँ, चिन्ता मत करो ।’
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यह कहकर राम जी चल पड़े, पोट लेकर । कुछ देर में ही बहुत दूर पहुँच गये । भक्त जी भागने लगे, बोले ~ ठहर भाई ! राम जी बोले ~ अब मैं नहीं ठहरता, तूँ आता रहना । इतने जोर से चलने लगे कि दिखाई भी नहीं दिये । भक्त जी ने सोचा ~ वह तो न मालूम कौन था ? दो मन नाज ले जायेगा, संतों की सेवा में लगता, मैंने बड़ी गलती की, जो गाँव वालों की बात नहीं मानी ।
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फिर मन में विचार करने लगे, आज तो गर्म पानी से स्नान करेंगे और कढी फुलका बनवा कर भोजने करेंगे । रामजी ने तत्काल घर जाकर पोट उतार दी और बोले ~ ‘‘भक्त जी पीछे आ रहे हैं । गर्म पानी रख दो और कढी फुलका उनके लिए भोजन को बनाना, आज भक्त जी ने बोला है ।’’ घर से बाई बोली ~ कुछ आपको मजदूरी देने को कहा है ? भगवान बोले ~ मैं तो उनसे लेता ही रहता हूँ । आप लोग तो खूब संतों की सेवा करो ।
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यह कहकर चले गये । पीछे से भक्त जी घबराये हुए आये और बोले ~ कोई नाज की पोट लेकर आया है क्या ? मैंने अनजान आदमी को आज पोट संभलवा दी । स्त्री बोली ~ घबरा क्यों रहे हो ? वह तो बड़ा धर्मात्मा था बेचारा । पोट घर में रखी है और कुछ उसने मेरे से मजदूरी भी नहीं ली । गर्म पानी आप के स्नान के लिए रखा है, और कढी बन गई है । आटा भिगो दिया है, फुलकों के लिये । वह बोल गया कि भक्त जी ने बताया है, सो अब स्नान करके भोजन करो ।
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भक्त जी यह सुन कर रोमांचित हो गये और नेत्रों से आंसू टपकने लगे और बोले, हे प्रिय ! वह तो नौकर नहीं था, वह तो राम जी महाराज थे । हाय ! मैंने अपने इष्टदेव राम जी को तकलीफ दी । मैंने उनकी कोई भक्ति नहीं की । हे नाथ ! मेरा अपराध क्षमा करो । तब भगवान ने आकाशवाणी की कि हे भक्त जी ! आप जैसे भक्त दुखी होते हैं, तब मुझे दुःख होता है । मैंने आपके मन के संकल्प को पूरा किया है ।

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