卐 सत्यराम सा 卐
दादू काया कटोरा दूध मन, प्रेम प्रीति सों पाइ ।
हरि साहिब इहि विधि अंचवै, वेगा वार न लाइ ॥
दादू माता प्रेम का, रस में रह्या समाइ ।
अन्त न आवै जब लगै, तब लग पीवत जाइ ॥
राम रटणि छाड़ै नहीं, हरि लै लागा जाइ ।
बीचैं ही अटकै नहीं, कला कोटि दिखलाइ ॥
दादू हरि रस पीवतां, कबहुँ अरुचि न होइ ।
पीवत प्यासा नित नवा, पीवणहारा सोइ ॥
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