शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

= षो. त./२९-३० =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“षोडशी तरंग” २९/३०)*
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*इन्दव छन्द*
*राजा मानसिंग ने आमेर में दादू द्वारा बनाया*
सादर मान करी विनती गुरु, 
धाम बनावहुं मैं गुरुद्वारे ।
भूपति भावहिं देखि रहे शिष, 
यों जगन्नाथ जु धाम पुजारे । 
संत सुथान बनाय रखे जन, 
तीरथ मध्य दिये निज द्वारे ।
अग्रिम बाग नजीक भरे जल, 
ताँ जगन्नाथ रहे शिष प्यारे ॥२९॥ 
भूपति मान करे गुरु सेवन, 
पाद - सरोजन की बलिहारी । 
केतिक काल रहे गुरु दादुजु, 
देखि सबै सुख पावत भारी । 
भूपति कों गुरु धीरज देवत, 
रामत की पुनि चित्त विचारी । 
गूदड़ि छाड़िहिं पाणि कमण्डलु, 
सेव दई जगन्नाथहिं सारी ॥३०॥
गुरुदेव की महिमा अगम है, शारद शेष द्वारा भी वर्णनगम्य नहीं है । गुरुकृपा से यह माधवदास यत् किंचित् वर्णन कर रहा है । राजा मानसिंह ने विनती की, गुरुद्वारे में भवन - धाम बनाने की इजाजत चाही । श्रद्धाभाव जानकर स्वामीजी ने आज्ञा दे दी - तब सागर - किनारे बगीचे के पास राजा ने गुरुद्वारा बनवाया । जगन्नाथ जी को पुजारी नियुक्त किया गया । राजा नित्यप्रति गुरुभाव से सेवा करने लगा । श्री दादूजी कुछ मास तक यहाँ विराजे, फिर राजा को धीरज देकर रामत का विचार किया । अपनी गूदड़ी यहीं छोड़कर केवल कमण्डलु लिये प्रस्थान किया ॥२९ - ३०॥
(क्रमशः) 

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