मंगलवार, 11 नवंबर 2014

= १७८ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
मध्य निर्पक्ष 
चलु दादू तहँ जाइये, जहँ मरै न जीवै कोइ । 
आवागमन भय को नहीं, सदा एक रस होइ ॥२३॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! विचार द्वारा सहजावस्था रूप समाधि में, स्वस्वरूप ब्रह्म में स्थिर होकर, लय लगाइये । फिर वहाँ न कोई जन्मता है और न कोई मरता ही है, क्योंकि उसमें जन्म और मरण के भय का अभाव है ॥२३॥ 
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चलु दादू तहँ जाइये, जहँ चंद सूर नहिं जाइ । 
रात दिवस की गम नहीं, सहजैं रह्या समाइ ॥२४॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! विचार द्वारा वहाँ जाओ, जहाँ प्रकृति से उत्पन्न चन्द्रमा, सूर्य, रात - दिन की गति कहिए, पहुँच नहीं है । वह चैतन्य ब्रह्मस्वरूप आत्मा सहजभाव से ही सम्पूर्ण संसार में समाया हुआ है, उसी में लय लगाओ ॥२४॥
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चलु दादू तहँ जाइये, माया मोह तैं दूर । 
सुख दुख को व्यापै नहीं, अविनासी घर पूर ॥२५॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जो ब्रह्म माया प्रपंच से रहित है और निर्मल है और सुख - दुःख से रहित है, उसी में नित्य अनित्य के विचार द्वारा निश्‍चय करना ॥२५॥ 
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चलु दादू तहँ जाइये, जहँ जम जोरा को नांहि । 
काल मीच लागै नहीं, मिल रहिये ता मांहि ॥२६॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जिस ब्रह्म - स्वरूप में किसी भी काल - कर्म की गति नहीं है, उस ब्रह्म में विचार द्वारा लय लगाकर अभेद होइये ॥२६॥ 
(श्री दादूवाणी~मध्य का अंग)

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