मंगलवार, 11 नवंबर 2014

= “च. विं. त.” ५/६ =

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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“चतुर्विंशति तरंग” ५/६)*
*बरसी पर संतों की भरमार ~*
ज्यूं पतश्या दल जात चढै कित, 
यों सबही दिश दीखत साधू ।
संत समाज जुड़े मंडली मिल, 
ज्यों बरषा ॠतु बादल भादू ।
द्वारहिं बाग सबै पुर भीतर, 
हैं जित ही तित संत समादू ।
भीर भई अति, जाय कही नहिं, 
द्वार पहूंच सके नहिं कादू ॥५॥ 
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*सोरठा*
परचो देखन भेष, टौंक महोत्सव ज्यूं जुरे ।
आवत संत अनेक, गुरुदादू को नाम सुनि ॥६॥ 
जैसे बादशाह की सेना कहीं आक्रमण के लिए प्रस्थान करती है, अथवा वर्षा ॠतु में भाद्रपद मास में मेघ घटायें उमड़ती हैं, उसी तरह संत मंडलियाँ चारों दिशाओं में नारायणपुर में उमड़ पड़ी । यत्र तत्र द्वार, बाग, नगर के बाहर भीतर साधु संतों की मंडलियाँ ही दिखाई देने लगी । जन समुदाय की भारी भीड़ के कारण श्रीदादू के द्वार तक पहुँचना भी अत्यन्त कठिन हो गया । श्री दादूजी का नाम सुनकर भूतपूर्व टौंक महोत्सव के समान भेष पंथ का स्वरूप और चमत्कार देखने के लये अनेक साधु संत सेवक भक्त एकत्र हो गये ॥५ - ६॥ 
(क्रमशः)

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