#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
जीवों का संशय पड़या, को काको तारै ।
दादू सोई शूरमा, जे आप उबारै ॥
जे निकसे संसार तैं, सांई की दिशि धाइ ।
जे कबहुँ दादू बाहुड़े, तो पीछे मार्या जाइ ॥
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साभार : Sunil Khandelwal Kachhwal ~
दो तिनके एक नदी में पड़ गए। दोनों एक ही हवा के झोंके से उड़कर एक ही साथ नदी तक आ पहुंचे थे। दोनों की परिस्थितियां समान थीं। परंतु दोनों की मानसिक स्थिति एक न थी। एक पानी में बह रहा था सुख-पूर्वक। तैरने का आनंद लेते हुए, तो दूसरे को किनारे पर पहुंचने की जल्दी थी।
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वह बड़े प्रयास करता। पूरी ताकत लगाता, परंतु नदी के शक्तिशाली बहाव के आगे बेचारे तिनके की ताकत ही क्या थी। उसके सारे प्रयास व्यर्थ होते रहे। बहता तो वह उसी दिशा में रहा, जिस दिशा में नदी बह रही थी, परंतु पहले तिनके की तरह सुखपूर्वक नहीं, बल्कि दुखी मन से। कुछ आगे जाने पर नदी की धारा धीमी हुई। पहला तिनका दूसरे से बोला- आओ मित्र, अब प्रयास करने के लिए समय अनुकूल है। चलो, मिलकर कोशिश करें। किनारे पर घास उगी है, जो नदी के बहाव को रोक भी रही है। थोड़ा प्रयास करने से हम अपनी दुनिया में पहुंच जाएंगे।
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परंतु दूसरा तिनका इतनी मेहनत कर चुका था कि वह थक गया था। वह आगे प्रयास न कर सका। परंतु पहला तिनका अपने मित्र को मुसीबत में छोड़कर किनारे नहीं गया। खुद को उससे उलझा दिया, जिससे तिनके की कुछ शक्ति बढ़ी। फिर जोर लगाया और एक लंबी घास को किसी तरह पकड़ लिया। कुछ देर सुस्ताने के बाद आखिरकार दोनों धीरे-धारे सूखे किनारे पर पहुंच ही गए।
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पहला तिनका पुराने साथियों की मीठी यादों से खुश था। किनारे नए मित्रों के बीच प्रसन्न था। दूसरा तिनका अब भी अपने पुराने स्थान के साथी तिनकों से बिछड़ने के कारण उदास, डूबने की याद से परेशान और भीग जाने से दुखी था।
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कथा मर्म : सकारात्मक विचारधारा हमें हौसला, समझदारी और शक्ति देती है, जिससे हम जीवन में किसी भी परिस्थिति का सामना कर लेते हैं।
जय श्री नाथजी की....
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