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🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“सप्तदशी तरंग” ७-८)*
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*भोजन के कीड़े बने गये*
यों मन धारि चल्यो पुर सेवक,
पाक बनाकरि पीथल ल्याये ।
थाल उठाय धरे चवकी पर,
संत न ईश्वर भोग लगाये ।
थालहिं खोलत पीथल देखत,
अन्नहिं कीट लटें झलकाये ।
भोग लगे किम कुलबुल कीटहिं,
जीव सतावत पाक बनाये ॥७॥
यों विचार कर पीथल भोजन पाक बना लाया, और थाल में परोसकर वस्त्र से ढक कर चौकी पर रखा, किन्तु संत ने ईश्वर के भोग नहीं लगाया । पीथल के बार - बार आग्रह पर संत श्री दादूजी ने थाल पर से वस्त्र हटाकर बताया कि - देखो, इस अन्न में वे जीव कीट - लटों की तरह कुल बुला रहे हैं, जिन्हें सता कर तुम धन लूट आये हो । ऐसे अन्न का भोग ईश्वर को कैसे अर्पित करें । यहां एक साहुकार का चांदी की शिला का प्रसंग भी है पीथा अन्धा हो गया था, झूठ बोलने से ॥७॥
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*पीथा ने चोरी न करने की सौगंध खाई*
पीथल अर्ज करी गुरुदेव जु,
का विधि ईश्वर भोग लगाओ ।
संत कहें - सत्कर्म धरो अन्न,
चोरि डकेति तजो सुख पाओ ।
काढि हदीस पर्यो चरणां परि,
जोरत पाणि रू शीष निवायो ।
मैं गुरुपाद गहे प्रण लेवहुं,
चोरि तजी गुरु शिष्य कहायो ॥८॥
तब पीथल ने प्रार्थना की - हे संतजी ! अब किस प्रकार ईश्वर के भोग लग सकता है, वह विधि बतलाइये । संत ने फरमाया - भाई ! सत्कर्म का अन्न ईश्वर को अर्पित करो, चोरी डकैती पाप कर्म छोड़ दो । सत्कर्म से ही सुख मिलता है । यह उपदेश सुनकर पीथल संत के चरणों में गिर पड़ा, और चरण पकड़ कर शपथ ग्रहण की - “मैं संत श्री दादूजी का शिष्य पीथल गुरुचरणों को स्पर्श करके यह शपथ लेता हूं कि अब कभी भी चोरी डकैती का पापकर्म नहीं करूँगा ॥८॥”
(क्रमशः)

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