मंगलवार, 8 जुलाई 2014

= बिनती का अंग ३४ =(३४)

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*#श्रीदादूदयालवाणी०आत्मदर्शन*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*पोख प्रतिपाल रक्षक ~*
*दादू पलक मांहि प्रकटै सही, जे जन करैं पुकार ।* 
*दीन दुखी तब देखकर, अति आतुर तिहिं बार ॥३४॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासु ! अन्तःकरण में विरह की आवाज से परमेश्वर को पुकारे, तो एक क्षण में ही तत्काल प्रकट हो जाते हैं । और फिर अपने जन को दुखी देखकर परमेश्वर भक्त की तुरन्त रक्षा करते हैं ॥३४॥ 
द्विज तिय ले मुकलाव तैं, ठग मार्यो बन जांहि । 
विरह वचन सुन तीय के, प्रभु आये छिण मांहि ॥ 
दृष्टान्त ~ एक हरि भक्त ब्राह्मण अपनी स्त्री को मुकलावे लेने ससुराल गया । ससुराल वालों ने इसे बहुत धन दिया और स्त्री - पुरुष दोनों को विदा कर दिया । रास्ते में इनको ठग मिल गए । यह उनसे बोला ~ राम राम भाई ! वे बोले ~ राम राम । हरि भक्त पूछने लगा ~ आप कहाँ जाओगे ? ठग बोले ~ तूँ जायेगा, वहीं हम जायेंगे । ठग बोले ~ यह जंगल वाला रास्ता सीधा है ।
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हरि भक्त बोला ~ नहीं भाई ! मैं तो सड़क से ही आता जाता हूँ । ठग बोले ~ हम जानते हैं कि यह रास्ता तुम्हें जल्दी पहुँचावेगा । तूँ हमको कोई चोर - बदमाश नहीं समझना । हमारे तेरे बीच में रामजी हैं, हम तेरे से धोखा नहीं करेंगे । तब स्त्री बोली ~ पति देव ! अब क्यों डरते हो ? अब तो जबरदस्त को बीच में दे दिया, इनके साथ ही चलिये । 
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जब जंगल में पहुँचे, तब एक ठग ने तलवार हाथ में लेकर, हरि भक्त का सिर काट दिया । सब धन ले लिया और स्त्री को बोले ~ चल हमारे साथ, नहीं तो तेरा भी सिर काट देंगे । स्त्री पांच कदम चलकर पीछे देखने लगी । ठग बोले ~ क्या देखती है ? वह तो मर गया । स्त्री विरह की आवाज से बोली ~ मैं उस समर्थ ईश्वर को देखती हूँ, जो तुम्हारे हमारे बीच में था । वह कैसे प्रकट नहीं हुआ ? 
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इतना कहते ही ठगों के और स्त्री के बीच में वही भगवान् प्रगट हो गये और ठगों को जान से मार दिया । उस अपनी अनन्य भक्त को, भगवान ने हृदय से लगाया । उसके पति को जीवित कर दिया और भगवान बोले ~ हे हरि भक्त ! तेरी स्त्री का जितना मेरे में दृढ़ विश्वास है, उतना तुम्हारा नहीं है । इसकी विरह - भक्ति की आवाज से ही मैं प्रकट हुआ हूँ । दोनों स्त्री - पुरुष ने भगवान के चरणों में नमस्कार किया । प्रभु ने दोनों भक्तों को अपनी निष्काम भक्ति का उपदेश देकर, कृत - कृत्य कर दिया ।

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