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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीदादूवाणी०प्रवचनपद्धति* 🌷
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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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अहमदाबाद प्रसंग(२)
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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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अहमदाबाद प्रसंग(२)
२९६. मंगलाचरण । राज विद्याधर ताल
नमो नमो हरि ! नमो नमो ।
ताहि गुसाँई नमो नमो, अकल निरंजन नमो नमो ।
सकल वियापी जिहिं जग कीन्हा, नारायण निज नमो नमो ॥टेक॥
जिन सिरजे जल शीश चरण कर, अविगत जीव दियो ।
श्रवण सँवारि नैन रसना मुख, ऐसो चित्र कियो ॥१॥
आप उपाइ किये जगजीवन, सुर नर शंकर साजे ।
पीर पैगम्बर सिद्ध अरु साधक, अपने नाम निवाजे ॥२॥
धरती अम्बर चंद सूर जिन, पाणी पवन किये ।
भानण घड़न पलक में केते, सकल सँवार लिये ॥३॥
आप अखंडित खंडित नाहीं, सब सम पूर रहे ।
दादू दीन ताहि नइ वंदित, अगम अगाध कहे ॥४॥
.
पद - नमो नमो हरि नमो नमो, ताहि गुसांई नमो नमो,
अकल निरंजन नमो नमो ॥ पद २९६ । यह चार पाद का पद है ।
प्रसंगकथा - वृद्ध भगवान् ने दादूजी को निर्गुणब्रह्म की भक्ति का उपदेश देकर कहा था - इसे भूलना नहीं और इसका प्रचार करना । तब दादूजी ने यह कहकर कि - कभी नहीं भूलूंगा । उक्त २९६ का पद बोलकर बारंबार नमस्कार किया था । उक्त प्रकार नमस्कार करने पर वृद्ध(ब्रह्म) ने कहा - तुम्हारी इच्छा हो वही वर माँग लो ।
.
तब दादूजी ने -
१७८(गुजराती) विनती । त्रिताल
भक्ति मांगूं बाप भक्ति मांगूं, मूने ताहरा नांऊं नों प्रेम लाग्यो ।
शिवपुर ब्रह्मपुर सर्व सौं कीजिये, अमर थावा नहीं लोक मांगूं ॥टेक॥
आप अवलंबन ताहरा अंगनों, भक्ति सजीवनी रंग राचूं ।
देहनें गेहनों बास बैकुंठ तणौं, इन्द्र आसण नहीं मुक्ति जाचूं ॥१॥
भक्ति वाहली खरी आप अविचल हरि, निर्मलो नाउं रस पान भावे ।
सिद्धि नें रिद्धि नें राज रूड़ो नहीं, देव पद माहरे काज न आवे ॥२॥
आत्मा अंतर सदा निरंतर, ताहरी बापजी भक्ति दीजे ।
कहै दादू हिवे कौड़ी दत आपे, तुम्ह बिना ते अम्हें नहीं लीजे ॥३॥
भक्ति मांगू बाप भक्ति माँगू, मू नैं ताहारा नाम नों प्रेम लाग्यो ।
यह तीन पाद का दादूवाणी का १७८ की संख्या का भजन बोलकर दादूजी ने अनन्य भक्ति रूप वर माँगा था । उक्त वर देकर वृद्ध(ब्रह्म) अन्तर्धान हो गये । फिर दादूजी वहां ही ध्यानस्थ हो गये ।
नमो नमो हरि ! नमो नमो ।
ताहि गुसाँई नमो नमो, अकल निरंजन नमो नमो ।
सकल वियापी जिहिं जग कीन्हा, नारायण निज नमो नमो ॥टेक॥
जिन सिरजे जल शीश चरण कर, अविगत जीव दियो ।
श्रवण सँवारि नैन रसना मुख, ऐसो चित्र कियो ॥१॥
आप उपाइ किये जगजीवन, सुर नर शंकर साजे ।
पीर पैगम्बर सिद्ध अरु साधक, अपने नाम निवाजे ॥२॥
धरती अम्बर चंद सूर जिन, पाणी पवन किये ।
भानण घड़न पलक में केते, सकल सँवार लिये ॥३॥
आप अखंडित खंडित नाहीं, सब सम पूर रहे ।
दादू दीन ताहि नइ वंदित, अगम अगाध कहे ॥४॥
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पद - नमो नमो हरि नमो नमो, ताहि गुसांई नमो नमो,
अकल निरंजन नमो नमो ॥ पद २९६ । यह चार पाद का पद है ।
प्रसंगकथा - वृद्ध भगवान् ने दादूजी को निर्गुणब्रह्म की भक्ति का उपदेश देकर कहा था - इसे भूलना नहीं और इसका प्रचार करना । तब दादूजी ने यह कहकर कि - कभी नहीं भूलूंगा । उक्त २९६ का पद बोलकर बारंबार नमस्कार किया था । उक्त प्रकार नमस्कार करने पर वृद्ध(ब्रह्म) ने कहा - तुम्हारी इच्छा हो वही वर माँग लो ।
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तब दादूजी ने -
१७८(गुजराती) विनती । त्रिताल
भक्ति मांगूं बाप भक्ति मांगूं, मूने ताहरा नांऊं नों प्रेम लाग्यो ।
शिवपुर ब्रह्मपुर सर्व सौं कीजिये, अमर थावा नहीं लोक मांगूं ॥टेक॥
आप अवलंबन ताहरा अंगनों, भक्ति सजीवनी रंग राचूं ।
देहनें गेहनों बास बैकुंठ तणौं, इन्द्र आसण नहीं मुक्ति जाचूं ॥१॥
भक्ति वाहली खरी आप अविचल हरि, निर्मलो नाउं रस पान भावे ।
सिद्धि नें रिद्धि नें राज रूड़ो नहीं, देव पद माहरे काज न आवे ॥२॥
आत्मा अंतर सदा निरंतर, ताहरी बापजी भक्ति दीजे ।
कहै दादू हिवे कौड़ी दत आपे, तुम्ह बिना ते अम्हें नहीं लीजे ॥३॥
भक्ति मांगू बाप भक्ति माँगू, मू नैं ताहारा नाम नों प्रेम लाग्यो ।
यह तीन पाद का दादूवाणी का १७८ की संख्या का भजन बोलकर दादूजी ने अनन्य भक्ति रूप वर माँगा था । उक्त वर देकर वृद्ध(ब्रह्म) अन्तर्धान हो गये । फिर दादूजी वहां ही ध्यानस्थ हो गये ।
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