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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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३९१. समर्थ लीला । तिलवाड़ा
ऐसो राजा सेऊँ ताहि,
और अनेक सब लागे जाहि ॥टेक॥
तीन लोक ग्रह धरे रचाइ,
चंद सूर दोऊ दीपक लाइ ।
पवन बुहारे गृह आँगणां,
छपन कोटि जल जाके घरां ॥१॥
राते सेवा शंकर देव,
ब्रह्म कुलाल न जानै भेव ।
कीरति करणा चारों वेद,
नेति नेति न विजाणै भेद ॥२॥
सकल देवपति सेवा करैं,
मुनि अनेक एक चित्त धरैं ।
चित्र विचित्र लिखैं दरबार,
धर्मराइ ठाढ़े गुण सार ॥३॥
रिधि सिधि दासी आगे रहैं,
चार पदारथ जी जी कहैं ।
सकल सिद्ध रहैं ल्यौ लाइ,
सब परिपूरण ऐसो राइ ॥४॥
खलक खजीना भरे भंडार,
ता घर बरतै सब संसार ।
पूरि दीवान सहज सब दे,
सदा निरंजन ऐसो है ॥५॥
नारद गावें गुण गोविन्द,
करैं शारदा सब ही छंद ।
नटवर नाचै कला अनेक,
आपन देखै चरित अलेख ॥६॥
सकल साध बाजैं नीशान,
जै जैकार न मेटै आन ।
मालिनी पुहुप अठारह भार,
आपण दाता सिरजनहार ॥७॥
ऐसो राजा सोई आहि,
चौदह भुवन में रह्यो समाहि ।
दादू ताकी सेवा करै,
जिन यहु रचिले अधर धरै ॥८॥
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पद ३९१ ऐसो राज सेऊं ताहि०
की प्रसंग कथा -
कहा भरुंटे राव ने, दादू चल मम गाँव ।
ताको या पद से कहा, नृपति सुनाया नांव ॥
बीकानेर नरेश भूरुटियाराव रायसिंह खाटू ग्राम में आये थे, कारण वि.सं. १६५७ में बादशाह ने माधोसिंह को हटाकर नागौर आदि परगने रायसिंह को जागीर में दिये थे । उनकी व्यवस्था के लिये खाटू आये थे । उन्होंने सुना कि भीमराज(बड़े सुन्दरदासजी) मेरे काकाजी के गुरु दादूजी ईडवा में विराजते हैं ।
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अतः दर्शन सत्संग के लिये राजा ने दादूजी को खाटू में बुलाया । किन्तु फिर राजा के गुरु गोकुलिये गुसांई ने उसे बहका दिया । दादूजी गये तब उनका अनादर किया और मारने के लिये मतवाला हाथी भी छोड़ा किन्तु वह हाथी चरण छूकर तथा चरण रज शिर पर लगा कर हट गया । तब सब डर गये ।
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फिर बड़े सुन्दरदासजी ने हिमालय की रसायनी गुफा पर उक्त घटना अपनी योगशक्ति से जानकर सहसा खाटू में प्रकट होकर बीकानेर नरेश रायसिंह को डाँटते हुये कहा - तुझे संतों की सेवा करनी चाहिये या संतों को मारवाने का यत्न करना चाहिये । तब रायसिंह ने अपनी गलती स्वीकार कर के फिर दादूजी से प्रार्थना की - अब आप बीकानेर पधारें मैं आपकी और आपके शिष्यों की सब प्रकार सेवा करुंगा ।
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दादूजी ने - ऐसो राजा सेऊं ताहि, और अनेक सब लागे जाहिं ॥टेक॥
यह पद सुनाकर बीकानेर जाना अस्वीकार कर दिया था । यह प्रसंग श्री दादूचरितामृत के ८४ बिन्दु में विस्तार से पढ़ें । यहां तो केवल उक्त पद का प्रसंग ही लिखा है ।
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