शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

= ७५ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
पंच तत्त्व का पूतला, यहु पिंड सँवारा । 
मंदिर माटी मांस का, बिनशत नहिं बारा ॥ 
हाड़ चाम का पिंजरा, बिच बोलणहारा । 
दादू तामें पैस कर, बहुत किया पसारा ॥ 
बहुत पसारा कर गया, कुछ हाथ न आया । 
दादू हरि की भक्ति बिन, प्राणी पछताया ॥ 
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साभार : Mahant Ramgopal Das Tapasvi

सत्य राम सा 
कारीगर करतार क हुन्दर हद किया, 
दस दरवाजा राख शहर पैदा किया । 
नख सिख महल बनाय क दीपक जो दिया, 
हरिहाँ भीतर भरी भँगार क ऊपर रँग किया ॥ 
परमात्मा जगत का अभिन्न निमितोपादान कारण है । बाजीद कहते है, कर्ता = कारीगरी करके जगत को बनाया । 
दशद्वार बनाकर शरीर रूपी शहर बनाया । महल रूपी शरीर को नख से लेकर शिखा तक बनाकर उसमें आत्मा रूपी दीपक जोड़ = प्रज्वलित कर दिया । उसके अन्दर में तो भंगार = गंदी - संदी, सड़ी - गली वस्तुएँ भरी है, किंतु ऊपर रंग रूपी अच्छी चमड़ी लगा दी है ।

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