शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

= ७४ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
७२. राज मृगांक ताल 
नीके राम कहत है बपुरा । 
घर मांही घर निर्मल राखै, 
पंचों धोवै काया कपरा ॥टेक॥ 
सहज समर्पण सुमिरण सेवा, 
तिरवेणी तट संजम सपरा । 
सुन्दरी सन्मुख जागण लागी, 
तहँ मोहन मेरा मन पकरा ॥१॥ 
बिन रसना मोहन गुण गावै, 
नाना वाणी अनुभव अपरा । 
दादू अनहद ऐसे कहिये, 
भक्ति तत्त यहु मारग सकरा ॥२॥ 
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साभार : Pravesh K. Singh

“...जीवात्मा के ऊपर चार जड़ शरीर हैं| इसी के लिए संत कबीर साहब के वचन में ‘घूँघट’ शब्द आया है| इन चारों को खोल दें, तो फिर ईश्वर-दर्शन में कोई रुकावट नहीं| इसी को गुरु नानक साहब दूसरी तरह से कहते हैं – 
घरि महि घरि देखाइ देइ 
सो सतगुरु परखु सुजाणु | 
स्थूल में सूक्ष्म, सूक्ष्म में कारण और कारण में महाकारण व्यापक है| इसी को संत दादू दयालजी ने कहा है – 
घर माहैं घर निर्मल राखै, 
पंचौं धोवै काया कपरा | 
घर में घर को पवित्र रखो और पाँचो कायरूप कपडों को धो डालो| स्थूल की पवित्रता बाहरी शौच और अंतःकरण की शुद्धता से होती है| स्थूल की लपेट सूक्ष्म पर से उतर गयी, सूक्ष्म पवित्र हो गया| इसी प्रकार कारण और महाकारण के सम्बन्ध में समझिये| चेतनमय शरीर तब धुल गया, जब महाकारण उस पर से उतर गया| कहने का ढंग अलग-अलग है, किन्तु सब हैं एक तरह| जैसे कई बाजाओं के तारों को एक समान कसकर रखिये, तो सबसे एक ही तरह की ध्वनि निकलेगी| मालूम होता है की इन सब संतों ने एक ही तरह की आत्मोन्नति की थी और एक ही तरह की साधना की थी| केवल कहने का ढंग अलग-अलग है| इन शरीर-रुपी कपड़ों से, घूँघट से जो अपने को नहीं निकलता, वह घर में घर को नहीं देखता और वह ईश्वर को कभी नहीं पा सकता|” 
– महर्षि मेंहीं परमहंस

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