गुरुवार, 28 अगस्त 2014

= विं. त. १/२ =

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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“विंशति तरंग” १/२)*
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*इन्दव छन्द~श्री दादूजी सांभर में*
संत समाज चले मँडली सँग, 
साँभर में गुरुदेव पधारे ।
सन्मुख आय सबै पुरवासिजु, 
हिन्दु रू तुर्क मिले जन सारे ।
साँझ समै पहुँचे गुरु आसन, 
मंगलाचार उछाव अपारे ।
संत सबै मिलि आरति गावत, 
राम धुनी तहँ हो ररंकारे ॥१॥
संत मंडली सहित साँभर नगर में पधारने पर गुरुदेव श्री दादूजी का नगरवासियों ने अति उत्साह से स्वागत किया, सन्मुख आये । हिन्दु और मुस्लमान सभी ने मिलकर मंगलाचार किया, उत्सव मनाया । साँझ समय गुरुदेव अपने आसन पर पधारे । सभी संतों और सेवकों ने मिलकर आरती गाई और रामधुनी सहित कीर्तन किया । संतों ने राम - राम का जाप किया ॥१॥
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साँभर सेवक दास महेश जु, 
गोविन्द लाल दमोदर भाई ।
खेमानन्द तहाँ हरिदास जु, 
टीकम और दमोदर आई ।
देव सुसेवक भक्त जु आवत, 
स्वामिहु प्रीति करें अधिकाई ।
होत विलास कथा नित नौतम, 
पाद - सरोजहिं देखि लुभाई ॥२॥ 
साँभर सेवकों में से महेश, गोविन्दलाल, दामोदर, खेमानन्द, हरिदास, टीकमदास, दामोदर द्वितीय तथा देवाराम ने गुरुचरणों में अत्यन्त प्रीति के साथ वन्दना की । नित्य - सत्संग और कथा का आयोजन होने लगा । गुरुचरणों को निरख कर सभी आह्लादित हो गये ॥२॥
(क्रमशः)

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