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*#श्रीदादूदयालवाणी०आत्मदर्शन*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*विनती का अँग ३४*
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*तुम्हीं तैं तुम को मिलैं, एक पलक में आइ ।*
*हम तैं कबहुँ न होइगा, कोटि कल्प जे जाइ ॥७६॥*
टीका ~ हे प्रभु ! आपकी कृपा से तो हम, आपको एक पलक में मिल सकते हैं । और हम अपने करणी कर्त्तव्य से तो, करोड़ों कल्प बीतने पर भी आपको नहीं मिल सकते ॥७६॥
ध्यान करे जन प्रीति सौं, बैठि आमली हेठ ।
नारद सौं कही कब मिलै, पूछो हरि सौ नेठ ॥
दृष्टान्त ~ एक आमली के नीचे बैठकर साधु परमेश्वर का ध्यान करता था । परन्तु मन में भक्ति का अहंकार ले रखा था । एक रोज नारद जी आये और संत को नमस्कार किया और बोले ~ मैं नारद हूँ, भगवान के पास कोई समाचार भेजने हों तो, मैं ले जाऊं । साधु बोले ~ भगवान से बोल देना कि आपका खूब तप - जप कर चुके हैं, आप उसको अब जल्दी दर्शन देकर आपके धाम में ले आना ।
नारद जी ने भगवान से जाकर उपरोक्त सब कुछ सुना दिया । भगवान बोले ~ नारद जी ! मैं उसको अभी नहीं मिलूंगा । उसको आप बोल देना कि जितने इमली के पत्ते हैं, उतने तेरे जन्म और होंगे, तब भगवान तेरे को दर्शन देंगे । जब नारद जी आकर, साधु से वही बात बोले ~ तब साधु एकदम भड़क उठा और माला को तोड़ डाली, आसन को फेंक दिया और भगवान् के नाम - स्मरण को छोड़कर, खोटे कर्म करने लगा ।
(क्रमशः)
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