बुधवार, 27 अगस्त 2014

= ए. त. २७ =

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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“एकोनविंशति तरंग” २७)*
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*इन्दव छन्द*
यों उन बीसहिं पाठ तरंगहिं, 
तो उपजै उर ज्ञान अपारा ।
धाम कल्याणपुरी चरचा सुनि, 
पावन होवत जात अंधारा ।
मोह अज्ञान सबै अध छीजत, 
आदित्य रूप भये उजियारा ।
माधवदास विलास हरी रस, 
है गुण सागर वार न पारा ॥२७॥ 
इस उन्नीसवीं तरंग के पठन श्रवण से निश्‍चित ही हृदय में ज्ञान का उदय होता है । कल्याणपुरी धाम की चर्चाओं से मन पावन हो जाता है, अज्ञान का अंधेरा दूर हो जाता है । मोह - लोभादि विकार और पाप क्षीण हो जाता है । आदित्य - उदय के समान भक्ति का प्रकाश हो जाता है । माधवदास कहते हैं कि हरिभक्तों की लीलायें अनन्तगुणों का सागर है । इनका पार नहीं पाया जा सकता ॥२७॥ 
इति माधवदास विरचिते श्री संतगुणसागरामृत स्वामीरमणी निरूपण
॥ उन्नीसवीं तरंग सम्पूर्ण ॥१९
(क्रमशः)

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