शनिवार, 23 अगस्त 2014

*सीकरी प्रसंग षष्ठ दिन*

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*सीकरी प्रसंग षष्ठ दिन*
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षष्ठ दिन को अकबर ने कहा - आप निर्गुण ब्रह्म सम्बन्धी वचन बहुत बोलते हैं अतः आप निर्गुण ब्रह्म का अपने अनुभव के आधार पर परिचय दें ? दादूजी ने कहा -
* आत्म बेलीतरु*
*दादू जोति चमकै झिलमिलै, तेज पुंज प्रकाश ।*
*अमृत झरै रस पीजिए, अमर बेलि आकाश ॥९२॥*
दादू अविनाशी अंग तेज का, ऐसा तत्त्व अनूप ।
सो हम देख्या नैन भरि, सुन्दर सहज स्वरूप ॥९३॥
परम तेज प्रगट भया, तहाँ मन रह्या समाइ ।
दादू खेलै पीव सौं, नहीं आवै नहीं जाइ ॥९४॥
निराधार निज देखिये, नैनहुँ लागा बन्द ।
तहँ मन खेलै पीव सौं, दादू सदा आनन्द ॥९५॥
(परिचय अंग ४)
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९२ से ९५ साखी तक निर्गुण ब्रह्म का परिचय दिया । उसे सुनकर बादशाह प्रसन्न हुआ था । अकबर ने पू़छा - मेरी वृत्ति स्थिर कैसे हो ?
दादूजी ने कहा - वृत्ति शुद्ध होने से स्थिर होती है । आप लोगों की वृत्तियां नाना प्रकार के व्यसनों में लगी रहने से अशुद्ध ही रहती है ।
अकबर - व्यसन कितने हैं ?
दादूजी ने कहा सात हैं और वे ये हैं १ - वैश्यागमन २ - द्यूत ३ - परनारी गमन ४ - मद्यपान ५ - चोरी ६ - शिकार ७ - मांस भक्षण ।
अकबर - आप व्यसनों से दूर कैसे रहते हैं ?
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दादूजी ने कहा -
दया निर्वैरता
कुल आलम यके दीदम, अरवाहे इखलास ।
बद अमल बदकार दुई, पाक यारां पास ॥३४॥
काल झाल तैं काढ कर, आतम अंग लगाइ ।
जीव दया यहु पालिये, दादू अमृत खाइ ॥३५॥
दादू बुरा न बांछै जीव का, सदा सजीवन सोइ ।
परलै विषय विकार सब, भाव भक्ति रत होइ ॥३६॥
(दया नि. अंग २९)
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बे महर गुमराह गाफिल, गोश्त खुरदनी ।
बेदिल बदकार आलम, हयात मुरदनी ॥११॥
(सांच अंग १३)
दादू मांस आहारी जे नरा, ते नरसिंह सियाल ।
बक मंजार सुनहां सही, येता प्रत्यक्ष काल ॥५॥
(सांच अंग १३)
वैर विरोधे आत्मा, दया नहीं दिल मांहि ।
दादू मूरति राम की, ताको मारन जांहि ॥३३॥
(दया नि. अंग २९)
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इत्यादि अनेक साखियां और
४०२. हित उपदेश । खेमटा ताल
हाजिरां हजूर सांई, है हरि नेड़ा दूर नांही ॥टेक॥
मनी मेट महल में पावै, काहे खोजन दूरि जावै ॥१॥
हिर्स न होइ, गुस्सा सब खाइ, तातैं संइयां दूर न जाइ ॥२॥
दुई दूर दरोग न होइ, मालिक मन में देखै सोइ ॥३॥
अरि ये पँच शोध सब मारै, तब दादू देखै निकटि विचारै ॥४॥
यह पद सुनाकर हिंसा और मांस भक्षण का निषैध किया । तुम भी हिंसा और मांस भक्षण का त्याग करके साधन द्वारा निर्गुण ब्रह्म का साक्षात्कार कर सकते हो । फिर सत्संग समाप्त हो गया ।

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