#daduji
सीकरी प्रसंग आठवें दिन
अकबर बादशाह ने दादूजी से कहा- आप बारंबार राम का भजन करने का उपदेश करते हैं, मैंने तीन राम सुने है । १ परशुराम २ दशरथ पुत्र राम और ३ बलराम । इनमें आप किसका भजन करते हैं और उपदेश देते हैं । कृपा करके कहैं ? यह सुनकर दादूजी ने कहा-
जामै मरै सो जीव है, रमता राम न होइ ।
जामण मरण तैं रहित है, मेरा साहिब सोइ ॥ १५ ॥
उठै न बैसै एक रस, जागै सोवै नांहि ।
मरै न जीवै जगतगुरु, सब उपज खपै उस मांहि ॥ १६ ॥
ना वह जामै ना मरै, ना आवै गर्भवास ।
दादू ऊंधे मुख नहीं, नरक कुंड दस मास ॥ १७ ॥
( पी. पह. अंग २०)
तक की साखी कहकर ५४ का पद भी कहा-
५४. स्वरूप गति हैरान । वर्ण भिन्न ताल
ऐसा राम हमारे आवै, वार पार कोई अन्त न पावै ॥ टेक ॥
हलका भारी कह्या न जाइ, मोल माप नहीं रह्या समाइ ॥ १ ॥
कीमत लेखा नहीं परिमाण, सब पच हारे साधु सुजाण ॥ २ ॥
आगो पीछो परिमित नांहिं, केते पारिख आवहिं जाहिं ॥ ३ ॥
आदि अन्त मधि कहै न कोइ, दादू देखै अचरज होइ ॥ ४ ॥
उक्त निरंजन राम के स्वरुप संबन्धी प्रवचन सुनकर बादशाह अति प्रसन्न हुआ और धन्य धन्य करते हुये बोला- भगवन् ! गतरात्रि को अन्तःपुर की महिलाओं ने आपके दर्शन की तीव्र इच़्छा प्रकट की है । अतः आप पधारने की कृपा करें । दादूजी ने स्वीकार कर लिया । बादशाह की आज्ञा से अन्तःपुर की सब मातायें एकत्र हो गई तब दादूजी पधारे और उनको पतिव्रत पालन करने का उपदेस इन साखियों से दिया-
पतिव्रता गृह आपने, करै खसम की सेव ।
ज्यों राखै त्यों ही रहै, आज्ञाकारी टेव ॥ ३४ ॥
दादू नीच ऊँच कुल सुन्दरी, सेवा सारी होइ ।
सोई सुहागिन कीजिये, रूप न पीजे धोइ ॥ ३५ ॥
दादू जब तन मन सौंप्या राम को, ता सन क्या व्यभिचार ।
सहज शील संतोष सत, प्रेम भक्ति लै सार ॥ ३६ ॥
(निष्का, पतिव्रता अंग ८ )
की साखियों से दिया और ६३ के पद से भी उनको उपदेश दिया । ६३ का पद-
६३. आत्मार्थी भेष । घट ताल
सोई सुहागिनी साच श्रृंगार, तन मन लाइ भजै भर्तार ॥ टेक ॥
भाव भक्ति प्रेम ल्यौ लावै, नारी सोई सार सुख पावै ॥ १ ॥
सहज संतोंष शील सब आया, तब नारी नाह अमोलक पाया ॥ २ ॥
तन मन जौबन सौंप सब दीन्हा, तब कंत रिझाइ आप वश कीन्हा ॥ ३ ॥
दादू बहुरि वियोग न होई, पीव सौं प्रीति सुहागिनी सोई ॥ ४ ॥
उक्त उपदेश करके दादूजी अन्तःपुर से लौट आये .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें