🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“एकोनविंशति तरंग” २३-२४)*
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लाला बनजारा धन, बालद सुं ल्याये जन,
स्वामीजी के पाद परे प्रार्थना जु करी है ।
सूखे पड़े, सरोवर, जल बिना प्यासे भर,
मानव रू बैल सब भूख प्यास मरे है ॥
लाला की पुकार सुन, गुरु बरसायो घन,
ताल खंड भरे वहाँ जल सब सरी है ।
रैन नृत्य करें सब, बनजारे गावें तब,
दादूजी महान् संत, अवतारी खरी है ॥२३॥
बनजारा लालाराम अपनी बालद में धन - सम्पत्ति लादे हुये मोरड़ा ग्राम पहुँचा । एक लाख गाय और बैल थे, पानी के अभाव में गाय बैल आदमी मर गये तलाबों और कुवों में पानी खत्म हो गया । बनजारा और घरवाली दोनो रो रहे थे तब किसी ने पूछा भाई क्यूं रो रहे हो बनजारा ने बताया कि मेरी बालद और आदमी प्यासे मर गये तब उसने बताया कि रोवो मत मेरी बात मानों पास में श्री दादूजी विराजते हैं आप उनके पास जावो आपका सारा संकट दूर हो जावेगा । कल कि बात है कि श्री दादूजी तब पधारे तब बड़ का सूखा ठूठ था उसी के पास बैठ गये, तलाब के किनारे, तब मैंने और काफी लोग थे कहा महाराज यह तो सूखा ठूंठ है, आप छाया में पधारो तब श्री दादूजी ने कहा हरि को हरा करते क्या देर लगती है, देखते ही देखते वह सूखा पेड़ तुरंत हि हरा हो गया उसके डाली और पत्ते तुरंत फैल गये, छाया हो गई । वहाँ संत का विराजना सुनकर दर्शनार्थी खूब आ रहे है । तब बनजारा ओर बनजारन रोते - रोते ही श्री दादूजी के पास गये, दादूजी ने पूछा क्यों रोते हो तब बनजारा ने पाद वन्दना करके प्रार्थना की - हे गुरुदेव! सारे सरोवर सूखे पड़े हैं, जल बिना सब प्यासे मर गये हैं, मानव और बैल भूख प्यास से मर जायेंगे । लाला की पुकार सुनकर गुरुदेव ने मेघ वर्षा का आह्वान किया ।
३३२. परिचय विनती । त्रिताल
वर्षहु राम अमृतधारा,
झिलमिल झिलमिल सींचनहारा ॥टेक॥
प्राण बेलि निज नीर न पावै,
जलहर बिना कमल कुम्हलावै ॥१॥
सूखे बेली सकल बनराय,
राम देव जल वर्षहु आय ॥२॥
आतम बेली मरै पियास,
नीर न पावै दादूदास ॥३॥
श्री दादूजी महाराज ने प्रार्थना करने पर खूब बारिश हुई साथ में अमृत भी वर्षा, गाय, बैल, बनजारा सारा जीवित हो गया, सबहि लोग बनजारा को खोज रहे थे तब दादूजी ने कहा, भाई जावो क्यों रोते हो तुम्हारे को सब खोज रहे हैं, बनजारा ने कहा सब मर गये, दादूजी ने पुन: कहा जावो, बनजारा दोनों गये तब सब जीवित हो गये, बनजारा ने सबको गाय बैल बांट दिया, पुन: दादू के पास आ गया और चरणों में गिर गया, प्रार्थना करने लगा श्रीदादूजी का शिष्य बन गया । सारे ताल - तलैया जल से भर गये । सभी बनजारे मिलकर रातभर नृत्य करते रहे, और सिद्ध अवतारी श्री दादूजी का जयगान करते रहे ॥३३२॥
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गांव मोटड़ा बड़ तले, स्वामी करी एक सेल ।
एक शब्द में उधरे बणजारे और बैल ॥
बहुत उछाव करी, साधु संत भाव धरी,
अन्न बरताय जन, गुरु पग धारिये ।
गुरु उपदेश पैल, लाला सूं छुड़ाये बैल,
पशु का उद्धार करि जीव निस्तारिये ।
गुरु के चरण परि, लाला कहे शिष्य करि,
गुरु उपदेश देत शिष्य भाव पारिये ।
गुरु करे मोरड़ा से, प्रयाण पट्ट थान,
राम नाम भक्ति भाव हृदय माहिं धारिये ॥२४॥
लालाराम बनजारा ने गुरुकृपा से प्रसन्न होकर बहुत उत्सव मनाया, साधु संतों की सेवा की, अन्न धन का वितरण किया । फिर गुरुसेवा में उपस्थित होकर बोला - गुरुदेव ! कोई आज्ञा या उपदेश दीजिये । तब श्री दादूजी ने उपदेश देकर समझाया - इन मूक प्राणी बैलों को मत सताओ, इन्हें बन्धन से मुक्त करा दो । गुरुदेव की आज्ञा से लालाराम ने बैलों को मुक्त कर दिया जितने नौकर और आदमी बालक थे सभी को हजार, ५०० - ५०० या किसी को कितना किसी को कितनी गाय दे दी और शिष्य बनकर भगवद्भक्ति में लग गया । पश्चात् गुरुदेव पट्टन ग्राम में पधारे । वहां रामनाम का उपदेश देकर सेवकों के हृदयों में भक्ति भाव का संचार किया ॥२४॥
(क्रमशः)
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