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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“विंशति तरंग” ९/१०)*
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*दोहा*
जगन्नाथ शिष धाम में, सेव करे हरषाय ।
होत कथा सतसंग नित, अम्बपुरी जन आय ॥९॥
आमेर स्थित श्री दादू - आश्रम में शिष्य जगन्नाथ जी सारी व्यवस्था संभाल रहे थे । सत्संग कथा का आयोजन नित्य ही होता था, जिससे सभी हर्षित थे ॥९॥
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*इन्दव छन्द*
*क्रांजल्या से सेवक आये*
क्रांझलि तें पुनि सेवक आवत,
नाम सुन्यो तहँ आवत रानी ।
रामहिं दास उजागर सेवक,
जीवन मुक्त भये सुनि बानी ।
सेवक राम जु दास उजागर,
वैश्य डंगायच गोत्र बखानी ।
नारिपती जग रीति निवारत,
भक्त भये जपि सारंग पानी ॥१०॥
गुरुदेव का आमेर में विराजना सुनकर क्रांझलि ग्राम के सेवक सेवा में उपस्थित हुये । रामदास और उनकी पत्नी राणीबाई ने अत्यन्त श्रद्धाभक्ति से क्रांझलि ग्राम में पधारने के लिये गुरुदेव से निवेदन किया । गुरुदेव की स्वीकृति मिलने पर उन्हें ऐसा हर्ष हुआ, मानो जीवनमुक्ति का वरदान मिल गया हो ।(और वस्तुत: दोनों गुरुभक्ति तथा हरिभजन करते हुये जीवन - मुक्त हो गये थे) । ये रामदास डंगायच गोत्री वैश्य सज्जन थे, इनकी पत्नी राणीबाई भी परम श्रद्धालु भक्तिमती नारी थी । दोनों ही गुरुदेव का शिष्यत्व पाकर धन्य हो गये । सांसारिक रीति का परित्याग कर दोनों हरिभक्ति में लीन हो गये ॥१०॥
(क्रमशः)
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