सोमवार, 1 सितंबर 2014

७. विश्वास का अंग ~ ४

#daduji

॥ श्री दादूदयालवे नमः॥
.
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)* 
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व 
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*७. विश्वास का अंग* 
.
*भाजन आपु घड्यौ जिनि तौ,*
*भरि हैं भरि हैं भरि हैं भरि हैं जू ।* 
*गावत है तिनकै गुन कौं,*
*ढरि हैं ढरि हैं ढरि हैं ढरि हैं जू ॥* 
*सुन्दरदास सहाइ सही,*
*करि हैं करि हैं करि हैं करि हैं जू ।* 
*आदि हु अंत हु मध्य सदा,*
*हरि हैं हरि हैं हरि हैं हरि हैं जू ॥४॥* 
जिस हरि ने यह अनुपम देहपात्र बनाया है, वह अवश्य इसे भरेगा भी(भोजन देगा) । 
जिन की तूँ स्तुति कर रहा है, गुणकीर्तन कर रहा है, वे तुम पर अवश्य दया करेंगे ही । 
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - वे प्रभु तेरी सहायता अवश्य करेंगे; 
क्योंकि वे इस संसार के आदि अन्त मध्य - सभी भागों में सर्वत्र व्यापक हैं, विद्यमान हैं ॥४॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें