#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः॥
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*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*७. विश्वास का अंग*
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*भाजन आपु घड्यौ जिनि तौ,*
*भरि हैं भरि हैं भरि हैं भरि हैं जू ।*
*गावत है तिनकै गुन कौं,*
*ढरि हैं ढरि हैं ढरि हैं ढरि हैं जू ॥*
*सुन्दरदास सहाइ सही,*
*करि हैं करि हैं करि हैं करि हैं जू ।*
*आदि हु अंत हु मध्य सदा,*
*हरि हैं हरि हैं हरि हैं हरि हैं जू ॥४॥*
जिस हरि ने यह अनुपम देहपात्र बनाया है, वह अवश्य इसे भरेगा भी(भोजन देगा) ।
जिन की तूँ स्तुति कर रहा है, गुणकीर्तन कर रहा है, वे तुम पर अवश्य दया करेंगे ही ।
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - वे प्रभु तेरी सहायता अवश्य करेंगे;
क्योंकि वे इस संसार के आदि अन्त मध्य - सभी भागों में सर्वत्र व्यापक हैं, विद्यमान हैं ॥४॥
(क्रमशः)
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