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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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**सीकरी प्रसंग १७ वां दिन**
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१७ वें दिन अकबर बादशाह ने पू़छा - जो ज्ञान आप हमको देते हैं वह आपको कहां से प्राप्त हुआ था ? दादूजी ने कहा - मेरे गुरु वृद्ध(ब्रह्म) भगवान् ने अहमदाबात के कांकरिया तालाब पर दिया था ।
फिर ७७ का पद -
७७. गुरु अधीन ज्ञान । दादरा
बाबा ! गुरुमुख ज्ञाना रे, गुरुमुख ध्याना रे ॥टेक॥
गुरुमुख दाता गुरुमुख राता, गुरुमुख गवना रे ।
गुरुमुख भवना, गुरुमुख छवना, गुरुमुख रवना रे ॥१॥
गुरुमुख पूरा, गुरुमुख शूरा, गुरुमुख वाणी रे ।
गुरुमुख देणा, गुरुमुख लेणा, गुरुमुख जाणी रे ॥२॥
गुरुमुख गहबा, गुरुमुख रहबा, गुरुमुख न्यारा रे ।
गुरुमुख सारा, गुरुमुख तारा, गुरुमुख पारा रे ॥३॥
गुरुमुख राया, गुरुमुख पाया, गुरुमुख मेला रे ।
गुरुमुख तेजं, गुरुमुख सेजं, दादू खेला रे ॥४॥
भी सुनाया और कहा - पारमार्थिक ज्ञान तो सद्गुरु से ही होता है, असद्गुरु से नहीं ।
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अकबर ने पू़छा - असद्गुरु किसको कहते है ? दादूजी ने कहा -
शोधी नहीं शरीर की, औरों को उपदेश ।
दादू अचरज देखिया, ये जाहिंगे किस देश ॥१८॥
शोधी नहीं शरीर की, कहै अगम की बात ।
जान कहावें बापुड़े, आयुध लिये हाथ ॥१९॥
(गुरु अंग १)
इत्यादिक अनेक साखियों से असद्गुरु का परिचय दिया और असद्गुरु को विस्तार से समझाया । फिर सत्संग समाप्त हो गया ।
(क्रमशः)
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