सोमवार, 8 सितंबर 2014


||दादूराम सत्यराम||
दादू जानै बूझै जीव सब, गुण औगुण कीजे ।
जान बूझ पावक पड़ै, दई दोष न दीजे ॥ ९ ॥
टीका ~ हे जिज्ञासु ! जीव गुण और अवगुण अर्थात् पाप और पुण्य को जानता है, भली प्रकार समझता है, जैसे कोई अग्नि में जान बूझकर पांव रखें, तो जलेगा ही । इसी प्रकार जीव, शुभ - अशुभ जैसे कर्म करेगा, उनका वैसा ही फल भोगेगा । इसमें ईश्वर को दोष नहीं देना चाहिये ॥ ९ ॥

मन ही मांहीं ह्वै मरै, जीवै मन ही मांहि ।
साहिब साक्षीभूत है, दादू दूषण नांहि ॥ १० ॥
टीका ~ हे जिज्ञासु ! यह जीव चेतन मन के द्वारा, वासना से निषिद्ध कर्मों में प्रवृत्त होकर जन्मता - मरता है । और अपने अधिष्ठान चेतन का विचार करके सदा सजीवन भाव को प्राप्त हो जाता है । और वह परमात्मा चैतन्य, साक्षी रूप से सम्पूर्ण भूतों में, स्थित हो रहा है । जीव के कर्म - फल का उसे कोई दोष नहीं लगता है ॥ १० ॥

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