मंगलवार, 2 सितंबर 2014

= विं. त. ११/१२ =

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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“विंशति तरंग” ११/१२)*
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*श्री दादूजी सांगानेर पधारे आठ दिन सत्संग*
सांगहि नेर चले गुरु शिष्य जु, 
रज्जबजी गुरु को पधारये ।
शिष्य नरायण ओ हरिदास जु, 
कालु हि राम सुसेव कराये ।
वासर सात रहे, रमिये गुरु, 
चाटसु - सेवक आँगन आये ।
उद्धव जू हरिदास नरायण, 
कोरहिं कुम्भ धरे हरषाये ॥११॥ 
पश्‍चात् श्री दादूजी, रज्जबजी के आमंत्रण पर सांगानेर ग्राम में पधारे । वहाँ शिष्य नारायणदास, हरिदास और कालूराम सेवक ने बहुत सेवा की । सात दिवस वहाँ विराजकर गुरुदेव चाडसू(चाटसू) ग्राम में पधारे । उद्वव, हरिदास नारायण ने वहाँ संत सेवा में पलक पाँवड़े बिछा दिये । संतों के लिये कोरे कुम्भों में नीर भरा ॥११॥ 
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*कानोता और बस्सी पधारे*
ब्रह्महुदास सुसेव करी तहँ, 
आठुंहि याम समेलन कीन्हा ।
प्रश्‍न करें गुरु सों जन सेवक, 
आप दयामय उत्तर दीन्हा ।
आठ दिनां सतसंग भयो तहँ, 
फेर कणोत सुग्राम हिं चीन्हा ।
नाति नरायणदास तहाँ जन, 
सेवक भाव सबै सुख लीन्हा ॥१२॥ 
ब्रह्मदास तो आठों याम सेवा में पत्पर रहता । भक्त सेवकों ने गुरुदेव से विविध आध्यात्मिक प्रश्‍न पूछे । गुरुदेव ने दया करके सभी को सन्तुष्ट किया । आठ दिवस तक सत्संग करने के पश्‍चात् श्री दादूजी काणोता - ग्राम में पधारे । वहाँ नाती शिष्य नारायणदास ने संत सेवा करके अत्यन्त सुख अनुभव किया ॥१२॥ 
(क्रमशः)

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