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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“विंशति तरंग” ११/१२)*
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*श्री दादूजी सांगानेर पधारे आठ दिन सत्संग*
सांगहि नेर चले गुरु शिष्य जु,
रज्जबजी गुरु को पधारये ।
शिष्य नरायण ओ हरिदास जु,
कालु हि राम सुसेव कराये ।
वासर सात रहे, रमिये गुरु,
चाटसु - सेवक आँगन आये ।
उद्धव जू हरिदास नरायण,
कोरहिं कुम्भ धरे हरषाये ॥११॥
पश्चात् श्री दादूजी, रज्जबजी के आमंत्रण पर सांगानेर ग्राम में पधारे । वहाँ शिष्य नारायणदास, हरिदास और कालूराम सेवक ने बहुत सेवा की । सात दिवस वहाँ विराजकर गुरुदेव चाडसू(चाटसू) ग्राम में पधारे । उद्वव, हरिदास नारायण ने वहाँ संत सेवा में पलक पाँवड़े बिछा दिये । संतों के लिये कोरे कुम्भों में नीर भरा ॥११॥
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*कानोता और बस्सी पधारे*
ब्रह्महुदास सुसेव करी तहँ,
आठुंहि याम समेलन कीन्हा ।
प्रश्न करें गुरु सों जन सेवक,
आप दयामय उत्तर दीन्हा ।
आठ दिनां सतसंग भयो तहँ,
फेर कणोत सुग्राम हिं चीन्हा ।
नाति नरायणदास तहाँ जन,
सेवक भाव सबै सुख लीन्हा ॥१२॥
ब्रह्मदास तो आठों याम सेवा में पत्पर रहता । भक्त सेवकों ने गुरुदेव से विविध आध्यात्मिक प्रश्न पूछे । गुरुदेव ने दया करके सभी को सन्तुष्ट किया । आठ दिवस तक सत्संग करने के पश्चात् श्री दादूजी काणोता - ग्राम में पधारे । वहाँ नाती शिष्य नारायणदास ने संत सेवा करके अत्यन्त सुख अनुभव किया ॥१२॥
(क्रमशः)
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