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*#श्रीदादूदयालवाणी०आत्मदर्शन*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
.
*विनती का अँग ३४*
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*दादू जे साहिब लेखा लिया, तो शीश काट शूली दिया ।*
*मिहर मया कर फिल किया, तो जीये जीये कर जिया ॥८२॥*
इति विनती का अंग सम्पूर्णः ३४ ॥साखी ८२॥*
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टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*विनती का अँग ३४*
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*दादू जे साहिब लेखा लिया, तो शीश काट शूली दिया ।*
*मिहर मया कर फिल किया, तो जीये जीये कर जिया ॥८२॥*
इति विनती का अंग सम्पूर्णः ३४ ॥साखी ८२॥*
टीका ~ हे साहिब ! यदि आप हमारे मनुष्य - जन्म के कर्त्तव्यों का हिसाब लेओ, तो हम आपको देने में असमर्थ हैं । चाहे तो आप हमारा सिर काट लो, चाहे आप सूली पर चढ़ा दो, तो भी हमारे अपराधों का दण्ड पूरा नहीं हो सकता है । और आप अपने अपराधी सेवक जानकर ‘मिहर’ कहिये, क्षमा कर दो, तो हम जीकर, क्योंकि आप सब जीवों के जीवन रूप हो, आपके स्वरूप को प्राप्त हो सकते हैं ॥८२॥
वर्ष छत्तीस हजार लौं, करी बंदगी सार ।
अदल कियां उलटी पड़ी, फजल किया छुटकार ॥
दृष्टान्त ~ एक तपस्वी ने छत्तीस हजार वर्ष तक तप किया । जब परमेश्वर के दरबार में वह पहुँचा, तो न्यायकारी परमेश्वर उसको बोले ~ तुमसे हिसाब लें या माफ कर दें । तपस्वी जी बोले ~ महाराज ! आप हिसाब ले लो । तब परमेश्वर बोले ~ कि तुम तप करके जब चले तो, एक नगर के किनारे पनघट के कुएँ पर एक लड़की से जल पीने को माँगा था ।
उस लड़की ने तुम्हें कहा कि मेरे पतिदेव के पास थोड़ा जल रखने आई हूँ, उनको जल की जरूरत है । मुझे देर हो जायेगी । आपको पिलाकर, फिर मुझे दुबारा और जल निकालना पड़ेगा, इसलिये आप मेरे घर चलो, वहाँ मैं आपको जल भी और भोजन भी दोनों आपको देऊंगी । तब तुम उस लड़की से बोले ~ कि तुम मुझे एक लोटा जल का दे दो, मैं तुम्हें एक हजार वर्ष की तपस्या का फल देता हूँ ।
तब उस लड़की ने तुम्हें, एक लोटा जल का दिया । और उसने हजार वर्ष की तपस्या का फल तुमसे लेकर अपने पति को अर्पण कर दिया, तो छत्तीस पानी के लोटों में तो, तुम्हारे छत्तीस हजार वर्ष का तप खत्म हो गया । तुमने तो मेरा पानी बहुत गिराया है, बहुत पिया है, बहुत स्नान किया है । पानी का हिसाब तो तुम पहले पूरा दे दो, उसके बाद और सब हिसाब लेंगे । तपस्वी जी काँपने लग गये और रोम खड़े हो गये, और नेत्रों में से आंसू बहाते हुए बोले ~ हे नाथ ! आपको हिसाब कोई नहीं दे सकता है । जब आप हमको अपराधी जानकर क्षमा करोगे, तभी छुटकारा हो सकता है ।
इति विनती का अंग टीका सहित सम्पूर्णः ३४ ॥साखी ८२॥
वर्ष छत्तीस हजार लौं, करी बंदगी सार ।
अदल कियां उलटी पड़ी, फजल किया छुटकार ॥
दृष्टान्त ~ एक तपस्वी ने छत्तीस हजार वर्ष तक तप किया । जब परमेश्वर के दरबार में वह पहुँचा, तो न्यायकारी परमेश्वर उसको बोले ~ तुमसे हिसाब लें या माफ कर दें । तपस्वी जी बोले ~ महाराज ! आप हिसाब ले लो । तब परमेश्वर बोले ~ कि तुम तप करके जब चले तो, एक नगर के किनारे पनघट के कुएँ पर एक लड़की से जल पीने को माँगा था ।
उस लड़की ने तुम्हें कहा कि मेरे पतिदेव के पास थोड़ा जल रखने आई हूँ, उनको जल की जरूरत है । मुझे देर हो जायेगी । आपको पिलाकर, फिर मुझे दुबारा और जल निकालना पड़ेगा, इसलिये आप मेरे घर चलो, वहाँ मैं आपको जल भी और भोजन भी दोनों आपको देऊंगी । तब तुम उस लड़की से बोले ~ कि तुम मुझे एक लोटा जल का दे दो, मैं तुम्हें एक हजार वर्ष की तपस्या का फल देता हूँ ।
तब उस लड़की ने तुम्हें, एक लोटा जल का दिया । और उसने हजार वर्ष की तपस्या का फल तुमसे लेकर अपने पति को अर्पण कर दिया, तो छत्तीस पानी के लोटों में तो, तुम्हारे छत्तीस हजार वर्ष का तप खत्म हो गया । तुमने तो मेरा पानी बहुत गिराया है, बहुत पिया है, बहुत स्नान किया है । पानी का हिसाब तो तुम पहले पूरा दे दो, उसके बाद और सब हिसाब लेंगे । तपस्वी जी काँपने लग गये और रोम खड़े हो गये, और नेत्रों में से आंसू बहाते हुए बोले ~ हे नाथ ! आपको हिसाब कोई नहीं दे सकता है । जब आप हमको अपराधी जानकर क्षमा करोगे, तभी छुटकारा हो सकता है ।
इति विनती का अंग टीका सहित सम्पूर्णः ३४ ॥साखी ८२॥
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