🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीदादूवाणी०प्रवचनपद्धति* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*सीकरी प्रसंग १३ वां दिन*
.
१३ वें दिन अकबर ने पू़छा - निर्गुणा ब्रह्म का स्थान कहां है ? दादूजी ने कहा -
*दादू मुझ ही मांहीं मैं रहूँ, मैं मेरा घरबार ।*
*मुझ ही मांही मैं बसूं, आप कहैं करतार ॥२०८॥*
.
फिर पू़छा - वह किस दिशा में रहता है ? दादूजी ने कहा -
सबै दिशा सो सारिखा, सबै दिशा मुख बैन ।
सबै दिशा श्रवणों सुनें, सर्व दिशा कर नैन ॥२१३॥
(परिचय अंग ४)
परम तेज परापरं, परम ज्योति परमेश्वरं ।
स्वयं ब्रह्म सदई सदा, दादू अविचल सुस्थिरं ॥२२॥
(पीव पह. अंग २०)
.
उक्त २२ की साखी सुनकर अकबर ने कहा - परम तेज रूप और परम ज्योति रूप तो सूर्य है । अतः आपका इष्ट सूर्य ही होगा । दादूजी ने कहा -
जहां तैं सब ऊपजे, चंद सूर आकाश ।
पाणी पवन पावक किया, धरती कासु प्रकाश ॥५४॥
(परिचय अंग ४)
सारों के शिर देखिये, उस पर कोई नांहिं ।
दादू ज्ञान विचार कर, सो राख्या मन मांहि ॥२॥
(पीव पह. अंग २०)
पर ब्रह्म परात्परं, सो मम देव निरंजनं ।
निराकारं निर्मलं, तस्य दादू वदनं ॥२॥
(गुरु अंग १)
.
उक्त साखियों को सुनकर बादशाह वीरबल और जो राजा आदि श्रोता थे वे सभी अति आनन्द को प्राप्त हुये । फिर सत्संग समाप्त हो गया ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें