बुधवार, 3 सितंबर 2014

= विं. त. १३/१४ =

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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“विंशति तरंग” १३/१४)*
*बस्सी में दयाल दासजी शिष्य बने* 
मोहन उद्धव ओ हरिदास जु, 
लाल हु राम रू देव सुथाई । 
वे तन मन सों गुरु को अर्पित, 
नित्य सुनें उपदेश भलाई ॥ 
ग्राम कणोत सुं बस्सि पधारत, 
कान्हड़दास - बहिन तहं ल्याई । 
तीन दिनां लगि सेव करी गुरु, 
दास दयाल बणे शिष थाई ॥१३॥ 
मोहन, उद्धव, हरिदास, लालाराम, देवाराम आदि सेवक तन - मन से गुरुदेव के प्रति समर्पण भाव रखते हुये नित्य उपदेश सुनने आते । पश्‍चात् गुरुदेव बस्सी ग्राम में पधारे । कान्हड़दास जी की बहिन के निमंत्रण पर श्री दादूजी वहाँ तीन दिन विराजे । गुरुभक्ति से ओतप्रोत दयालदास जी शिष्य बन गये ॥१३॥ 
भक्त जु सूर हरि अरू टीकम, 
बालकराम दमोदर भाई । 
ठाकुरदास प्रयाग रू पीप हु, 
रामचरण जमुना पुरि बाई ॥ 
ये दश सेवक भाव धरें जन, 
प्रश्‍न रू उत्तर तें हरषाई । 
ब्रह्महिं चिन्तन ले उपदेश जु, 
जीवन धन्य कियो फल पाई ॥१४॥ 
सूरदास, हरिराम, टीकम, बालकराम, दामोदर, ठाकुरदास, पीपा प्रयाग, रामदास, चरणदास और जमुनाबाई ये दश सेवक गुरुदेव में अतीव श्रद्धा रखने लगे । नित्य प्रति आध्यात्मिक प्रश्‍न पूछते, और उत्तर पाकर परम प्रसन्न हो जाते । इन्होंने ब्रह्म - चिन्तन का उपदेश लेकर अपना जीवन धन्य बनाया ॥१४॥ 
(क्रमशः)

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