#daduji
||दादूराम सत्यराम||
जे साहिब सींचै नहीं, तो बेली कुम्हलाइ ।
दादू सींचै सांइयाँ, तो बेली बधती जाइ ॥ ५ ॥
टीका ~ हे जिज्ञासु ! ब्रह्मनिष्ठ सतगुरु जिज्ञासु की वृत्ति रूप बेली को अपने सत्य उपदेश रूपी जल से नहीं सींचें, तो साधक की वृत्तिरूप बेली मुरझाती है, अर्थात् उदास रहती है । और सतगुरु भक्ति - वैराग्य - ज्ञान रूपी जल से सींचते रहें, तो यह बेली साक्षी कूटस्थ रूप वृक्ष पर अपना विस्तार करती रहती है अर्थात् स्वरूपाकार बनी रहती है ॥ ५ ॥
हरि तरुवर तत आत्मा, बेली कर विस्तार ।
दादू लागै अमर फल, कोइ साधू सींचनहार ॥ ६ ॥
टीका ~ हे जिज्ञासु ! कूटस्थ साक्षीरूप हरि तो वृक्ष हैं और जिज्ञासु की आत्माकार वृत्ति बेली है । जैसे वृक्ष का सहारा लेकर बेली पनपती है, वैसे ही साधक की चैतन्य रूप बेली, कूटस्थ साक्षी का विचाररूपी आसरा लेकर स्वरूपाकार विस्तार को प्राप्त होती है । उस बेली के ज्ञान - रूपी अमृत फल लगता है, परन्तु इस बेली को कोई सच्चे काछ - वाछ निष्कलंक ब्रह्मनिष्ठ संत, अपने उपदेशों से सींचने वाले होते हैं ॥ ६ ॥
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