🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
.
*(“एकविंशति तरंग” १/२)*
.
*इन्दव छन्द -*
*निजधाम बनाने की आकाशवाणी हुई -*
याहि तरंग कथा बरणौं अब,
स्वामि थपे निजधाम नराणे ।
व्योम गिरा सुनि साधु विचारत,
क्यूं न थपे गुरु संत सुथाणे ॥
अन्तर की गुरु बात लखी सब,
यों सुरती कर वृत्ति पिछाणे ।
धाम बनाय दिवै गुरु आसन,
देश ढुंढार नरायण जाने ॥१॥
इस तरंग में स्वामी जी श्री दादूजी महाराज द्वारा नारायणपुर में निजधाम स्थापना का वर्णन होगा । आकाशवाणी द्वारा धाम स्थापना की आज्ञा सुनकर साधु संतों ने विचार किया कि गुरुदेव अब किस स्थान पर निजधाम की सपना करेंगे ? साधुओं के अन्तर्मन की बात को पहिचान कर श्री दादूजी ने ध्यान के समय ईश्वर में सुरति लगाई । अपनी शुद्धवृत्ति में ईश्वर आज्ञा को पहिचान कर गुरुदेव ने ढूंढार राज्य के अन्तर्गत नारायणपुर में निजधाम बनाया, जिसकी कथा अब आगे प्रस्तुत की जा रही है ॥१॥
.
*मोरड़े एक वर्ष विराजे -*
जीव उद्धार रहे पुन मोरड़े,
कीरति देश विदेश भये है ।
सम्वत् सोलह सौ जु अठावन,
संत यहां इक वर्ष रह्य है ॥
दीन दयालु कहें सब सन्तन,
सेवक भाव बधाय लये है ।
ज्यूं मन भाइ रहो तित ही तुम,
दो उपदेश प्रचार भये है ॥२॥
गुरुदेव श्री दादूजी जीवों का उद्धार करते हुये मोरड़ा ग्राम में विराज रहे थे । उनकी कीर्ति देश - विदेश में फैल चुकी थी । विक्रम संवत् १६५८ में श्री दादूजी इस मोरड़ा ग्राम में एक वर्ष तक विराजे । तत्पश्चात् सभी साधु संतों को आदेश दिया कि - अब आप लोग अपनी इच्छानुसार विभिन्न क्षेत्रों में रम जाओ । सेवक भक्तों में ज्ञान और भक्ति का प्रचार करो ॥२॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें