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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“विंशति तरंग” २१/२२)*
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*टहलड़ी ग्राम पधारे जग जीवनदासजी के*
जंगि पंचायण साँवल दास जु,
शिष्य बने सब सौ महिं सारे ।
पा उपदेश रू पद्धति साधत,
राम भजे भगवंत हिं प्यारे ॥
स्वामि पधारत स्थान टहेलड़ि,
ताँ जगजीवन चाव अपारे ।
सेव बहू विध कीन्ह सुश्रद्धहिं,
च्यारहु याम गुरु पद धारे ॥२१॥
जंगीदास, पंचायण, साँवलदास भी शिष्य बने । ये सभी श्री दादूजी के सौ शिष्यों में गिने जाते हैं । इन सभी ने गुरुदेव से भजन - पद्धति का उपदेश लिया, और भगवद्भजन करते हुये हरि को प्यारे हो गये । पश्चात् गुरुदेव पुन: टहलड़ी ग्राम पधार आये । वहाँ जगजीवन राम जी ने अतीव चाह से गुरुसेवा की । चारों याम गुरुसेवा में हाजिर रहते ॥२१॥
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*मनोहर - छन्द*
साँवल भजनदास, चूहड़ रू पांचूदास,
पालो सूं विष्णुदास, सौवें शिष जानिये ।
हरिदास भगवान, गावत अनूप तान,
वैराग्य हिं पंथ ठान, दादूजी प्रमाणिये ॥
संत महोच्छव करि, भोजन जिमाये हरि,
उपदेश हृदे धरि अनुभव ठानिये ।
कल्याण पट्टण गाँव, लाखा नरहरि नांव,
सेवा करे धरे भाव, गुरु ब्रह्य जानिये ॥२२॥
टलहड़ी ग्राम में बहुत दिनों तक संत महोत्सव होता रहा । साँवलदास, भजनदास, चूहड़दास, पाँचूदास, पाल्हणदास, विष्णुदास, श्री दादूजी के शिष्य बने । हरिदास और भगवानदास अतीव प्रेम से वैराग्य के भजन गाया करते । नित्य ही भोजन प्रसादी का क्षेत्र सदावर्त चलता रहाता । सभी संत भक्तों ने गुरुदेव के उपदेशों को अपने हृदय में अनुभूत किया । पश्चात् श्री दादूजी कल्याण - पाटण ग्राम में पधारे । वहाँ समीपस्थ आलोदा - ग्राम के भक्त लाखासिंह और नरहरि ने अत्यन्त श्रद्धाभाव से गुरुसेवा की । वे गुरुदेव को ब्रह्य तुल्य ही मानते थे ॥२२॥
(क्रमशः)
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