रविवार, 7 सितंबर 2014

#daduji  

||दादूराम सत्यराम||
स्वकीय मित्र - शत्रुता ~
दादू जामण मरणा सान कर, यहु पिंड उपाया ।
साँई दिया जीव को, ले जग में आया ॥ ७ ॥
टीका ~ हे जिज्ञासु ! यह चेतन रूपी जीव, परमात्मा का दिया हुआ, प्रारब्ध कर्म अनुसार, जन्म ने - मरने वाले शरीर रूपी पिंड को लेकर, जगत में आया है । फिर जैसे कर्म करता है, वैसे ही आगे मित्र और शत्रु तैयार होते रहते हैं ॥ ७ ॥
‘‘जन्मना जायते म्रुत्युर्ध्रुवम् ॥’’ - गीता

दादू विष अमृत सब पावक पाणी, सतगुरु समझाया ।
मनसा वाचा कर्मणा, सोई फल पाया ॥ ८ ॥
टीका ~ हे जिज्ञासु ! सत् उपदेश के देने वाले सतगुरु ने अपने सत् उपदेशों द्वारा परमार्थ और व्यवहार का मार्ग बताया है, और विचारवान साधक, स्वयं विचार करके, सतगुरु के बताये हुए मार्ग को समझे । विष अमृत कहिए, माया और माया के कार्य प्रपंच में आसक्ति, विष के समान है । और परमेश्वर का नाम - स्मरण, अमृत के तुल्य है । क्रोध अग्नि रूप है और शांति जलरूप है । जैसे जैसे राजस सात्विक तामस कर्म करता है, वैसे - वैसे यह जीव फल भोगता रहता है ॥ ८ ॥

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