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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“विंशति तरंग” २३/२४)*
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*इन्दव छन्द ~ आंधि ग्राम में पधारे*
आंधि सुग्राम दमोदर सेवक,
साधुन संग सदा सरसाई ।
दास गरीब रू पर्वत बोहित,
तारा पूरणदास सु भाई ॥
दास दयाल किशोर जु बालक,
पूरब देवहिं राज कहाई ।
चत्तरदास रू ध्यावहिं सेवक,
थोरइ - सेवक हैं सुखदाई ॥२३॥
वहाँ से गुरुदेव को आँधी ग्राम के सेवक ले गये और सत्संग लाभ पाकर अतीव हर्षित हुये । सत्संग में दामोदर, गरीबदास, पर्वतदास, बोहितदास, ताराचन्द, पूरणदास, दयालदास, किशोर, बालकराम, पूरब, देवाराम, राजाराम, चत्तरदास, ध्यानीराम आदि अनेक सेवकों ने गुरुदेव का कृपा प्रसाद पाया, और उपदेश सुनकर कृतार्थ हो गये ॥२३॥
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सूर हरी गुरु दर्शन पावत,
राहोलि दीन दयालु पधारे ।
ताँ तुलसी चतुराभुज सेवक,
रामहिं दत्त जु खेम विचारे ।
दे उपदेश चले हरि दास कुं,
रत्नपुरी तब संत सिधारे ।
माधवदास जु राम रिझावत,
तां सुख देय चले हरि प्यारे ॥२४॥
पश्चात् गुरुदेव राहोली - ग्राम में पधारे । वहाँ सूरदास हरिदास गुरुदेव के दर्शन पाकर अतीव प्रसन्न हुये । वहाँ के सेवक तुलसीराम, चतुर्भुज, रामदत्त खेमाराम ने श्रद्धा से संत सेवा की । हरिदास को ब्रह्मचिन्तन का उपदेश देकर श्रीदादूजी रतनपुरा ग्राम में पधारे । वहाँ माधवदास और रामदास संत - दर्शन से रीझ से गये । उन्हें ज्ञानोपदेश से सुख देकर संत आगे पधारे ॥२४॥
(क्रमशः)
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